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________________ झारण-समत्थ-साहिआ - डॉ. उदयचन्द्र, जैन एम, ए., पी-एच. डी. भवतम-णिण्णासणस्य जो जिणिंद विव रिसहणाहो खलु । तं पणमामि सया हं पवित्त-गुण-सामिद्ध-हेउं ।। कसाय-दोस-हारी वि जय जिणराय-अजियं महिय-डंभं । सुक्क-झाण-झाइयं वि जय-त्तय-सोक्ख-कारि-संभवं ।। सुह-परम-णाण-जुत्तं जय णाण-चक्खु-अहिणंदणं जिणं । सयलजिणेसराणं वि पणमामि सुद्ध-सिद्धीए हि ।। जिणझणी पयासिया जिण-वयणधणी गोयमो है मुणी। सव्वे जिण-पह-गामी जय प्राइरिय-उवज्झ-साहूण ।। अणुक्कम-सम्म-णाणी पाइरिय-वाणी लोय-पहाणी वि। ते दितु विसाल-मई हजारीमलधम्माइरियो । तस्स अण्णाणुवट्टी सिरीउमरावकुंवर-महासई । सत्थथेहि सोहिया सायर-सम-जस-रिद्धि-जुत्ता ।। झाण-समत्थ-साहिआ णिम्मल-गुण-गणहारी जिण-वयणी-मण-संसय-सय-हरणी। झाण-समत्थ-साहिया सिरि-सील-णिकेय-सिहरिधया ।। णिच्च-णिरंजण-सु-जण-हिय- णाणदिवायर - गुणरयणायरं । सयल-तिमिर-खय-करणं सविणय-भाव-धम्मधुरंधरं ।। पसम-विणय-कित्ती-धी जीवाणुकंपावरतर-पुण्णसिरी। सव्वेसि जीवाणं कप्पव्व वराणंद-दायिणी । सिद्ध-हत्थ-लेहिगा गुरु-भत्तीए एसा आगमत्थ-धम्म-सारं विजाणइ । सुणिम्मल-रयण-मणिव्व सत्थ-समुद्द-तरण-तरणी वि ।। पाणंदिय-समणी सा सत्थ-सारं स-लेहणीए लिहइ । जण-मण-णयणाणंदा सिद्ध-हत्थ-लेहिगा सया ॥ जिणवरवयण-पवीणा परम-सोम्म-सरल-हियय-महासई । विज्जाए वररत्ता गंगा-सम-संपत्त-पवित्ता ।। आई घड़ी अभिनंदन का चरण कमल के वंदन की प्रथम खण्ड/३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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