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भवतु किमपि किञ्चित् वर्णयाम्येव काव्यम्, सुरसमसुरसं वा शब्दचित्रं रचयेयम् । इह हि रचितमस्या योगवत्या महत्याः, सरसमपि यतः स्यादर्चनाया: कृपायाः ।।३४।। यदपि रचितमेतद् भावपूर्ण सुकाव्यम्, परमपि कथनीयं दोषदग्ध त्वमस्मिन् । भवति यदि सदोषं काव्यमेतत् कृपाया:, अणुरपि रमणीयो मे सहायः कवीनाम् ।।३५।। अहं कविर्वा न च पण्डितोऽस्म्यहो ! परन्तु विद्ये विदुषां वशम्वदः । करोमि काव्यं मनसोऽभिरञ्जकम्, गुरोः कृपात: कुशलोऽपि शिक्षणे ।।
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अद्धा-सुमन 0 जीतमल चौपड़ा, अजमेर
महावीर शासन दिपे, श्रमणी संघ प्रभाव, हार हुई हिवड़ा तणी, महासती "उमराव" । सत संयम की राह चल, जूझी संघर्ष मांय, तिल भी पीछे ना हटी, लीनो सत्यश पाय । उगन्ते माता गई, परणत गए पति देव, महाव्रत दे गुरुणी गई, भगवत राखी टेव । राव रंक के साथ में, सदा सरस व्यवहार, वचनामृत पी प्रेम से, केइ हुआ भव पार । कंटक कर्म निवारवा, तप जप कियो धरधीर, वसुन्धरा पावन करी, जा पहुँची कश्मीर । रमणीरत्न सुहावणी, अध्यात्मयोगिनी जान, जीवन सेवा में दिया, कंठ कोकिला मान । कोति चहुं दिश है घणी "श्री अर्चना" नाम, जन जन के मन में बसी, जगबल्लभ गूणधाम । यह ही प्रभु से प्रार्थना शत-शत वर्ष मंझार, हो दीर्घायु "जीतमल", शासन की सिणगार ।
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आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
अर्चनार्चन / ३२
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