SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । त्यागतपोमयी, समत्वयोगसंवाहिका, सत्योपदेशिनी महासतीजी म. के प्रति हृदय के उद्गारों की सरल अभिव्यंजना गौरव-गान - जैन साध्वी मधुबाला 'सुमन' शास्त्री, साहित्यरत्न ऋषभदेव से महावीर तक, बह सतियाँ बड़भागी। मुक्ति-मार्ग पर निकल पड़ीं वे, घरद्वार की ममता त्यागी । भारत भू की जनता को है, इन सतियों पर गर्व महान् । जितना कहूँ, वही है थोड़ा, कह नहीं सकती एक जबान ।। जब जब धरती कांपी अघ से, साहस लेकर अड़ी रहीं। पावनता दी भूमण्डल को, संयम-बल से खड़ी रहीं। उसी श्रेणी में सती "अर्चना", सम्मान्या सत्करणीया। तपःपूत तेजोमय दिव्या, योगसाधना वरणीया ।। मधुकर थे गुरुवर गुणगौरव, उच्च शील संयम के धारी। उनसे शिक्षा ज्ञान गुणानुग, पाई जीवन में अति भारी ।। उन ही के आशीर्वादों से, पल-पल करती रहीं विकास । ध्यान-योग की उच्च साधिका, समुदित जिससे दिव्य प्रकाश ।। दर्शन कर मन मेरा हर्षित, वाणी से बरसे रस धार । वत्सलता से भरा छलाछल, दिया मुझे है प्यार अपार ।। लिखू विविध गुण मैं चुन चुनकर, बन जाता है गुणमय हार । वन्दन करती चरण-कमल में, स्मृतिपथ में ला तव उपकार ।। स्वस्थ शतायुर्मय जीवन हो, कीति-वल्लरी सदा बढ़े। योग-मार्ग पर चलते चलते, कदम सिद्धि-सोपान चढ़ें। आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की प्रथम खण्ड / २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy