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आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
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वन्दना के स्वर
D साध्वी हेमप्रभा, साहित्यरत्न
अर्चनाजी जैसे दुर्लभ ही मिल पाते हैं सन्त, भूले भटके जीवों को सही दिखाते पन्थ । प्रसन्नता है अत्यन्त हृदय ए रोम-रोम मेंदीक्षा स्वर्ण जयंती पर प्रकट हो रहा अभिनंदन ग्रन्थ ॥ माँ अनुपा की कोख से दादिया में जन्म लिया, तातेड़ और हींगड दोनों कुलों को उज्ज्वल किया । चार चाँद लगा दिये पिता मांगीलालजी की कीर्ति में संयम लेकर नोखा में सबको गौरवान्वित किया |
संयम पथ दिखलाकर मेरी जीवन वाटिका को सरसाया, जो कुछ थोड़ा ज्ञान है, वह सब ग्राप ही से पाया । आपका आपको समर्पित कर करती हूँ यह कामना, इस लघु शिष्या पर सदैव बनी रहे आपकी छत्र-छाया ॥ असहाय दुःखी जनों के मानो ये तो प्राण हैं, क्या करूं इनका बखान, ये तो पूरे गुणवान हैं । सागर सा विशाल हृदय धर्ममार्ग बतलाने वाले, गुरुवर्या श्री अर्चनाजी, सती-समाज की शान हैं || आपकी ध्यान मौन साधना बहुत ही निराली है, रहता नहीं कभी, कोई क्षण उससे खाली है । क्या वर्णन करूं आपके विषय में सचमुच हम सुकुमार पौधों के ग्राप सच्चे माली हैं ! | ग्रहण कर लेते हैं जो असार में से सार, मिलता जिनसे है मुझे हर पल माँ सा प्यार । ऐसे गुरुणीसा के चरणों में अभ्यर्थना है कोटि बार बाल अज्ञानी शिष्या की कर देना नैया पार ||
ज्ञानाभ्यास,
नित्य करती रहूँ गुरुवर्या रहती है पल पल ऐसी मन में पूरी आस । बदलेंगी नहीं आशा को निराशा में ऐसा, अल्पमति " हेमप्रभा " को है पूरा विश्वास ॥
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अर्चनार्चन | २२
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