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________________ अर्चना की अर्चना D साध्वी उदितप्रभा 'उषा' धन्य घड़ी वह दिव्य सुपावन, " माँ ने जन्म दिया। व्याप्त हुआ आलोक जगत् में, __ सबका हर्षित हुआ हिया ।।१।। चरण-सेविनी शिष्या मैं हूँ, शत-शत वन्दन अर्पित करती। गुरुवर्या के श्रीचरणों में, भाव-कुसुम मैं हर्षित धरती ॥२॥ जो हितैषिणी वाणी द्वारा, जन-जन को उद्बोधित करतीं। पीड़ित, दुःखित, प्राकुल मन की, शोक, वेदना सहसा हरतीं ।।३।। मैं उनके हूँ पद-सरोज में, विनत भाव से संतत अभिनत । मेरी जीवन-बगिया की, संरचना की है जिनने शाश्वत ।।४।। विश्वविभूति, तपःपूता जो, भाव-सुधामय जल से निर्मल । अर्चन, पूजन, अभिवन्दन जो, आत्मदेव का करती उज्ज्व ल ।।५।। शब्दों में अमृत का निर्भर, झरता रहता जिनके प्रतिपल । पुण्य प्रभा आलोकित आनन, विकसाता आशा के शतदल ।।६।। गुरुवर्या की सदर्चना की, महत्तरा की तपःसमंचित । सन्निधि में मैं हूँ आह्लादित, हर्षित, प्रमुदित होकर प्राश्रित ॥७॥ आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की प्रथम खण्ड/१९ Jain Education International For Private & Personal Use Only inelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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