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आज भी आपको बाट जोहते हैं देवदारु । जो भीष्म प्रांधियों में टूटते नहीं झुक अवश्य जाते हैं, प्रांधियाँ चली जाती हैं औ' वह यथावत् हो जाते हैं । वही देवदारु चकित थे यह अन्य देवदारु कौन है ? जो विछोह-मृत्यु-सन्ताप-उत्पीड़न-अंधड़ों में न झुका, न रुका, न टूटा । अंधड़ स्वयं खण्ड-खण्ड हो टूट गये, हार गये, लौट गये ।।
अर्चना मुक्तक । संतरत्न पंडितप्रवर उदयमुनि म. सा.
नारी ने जग में भारतीय संस्कृति को रोशन किया है, प्रेम, त्याग, संयम, वात्सल्य का अमर संदेश दिया है। जैनधर्म भी है बड़भागी नारी ने इसे दिपाया "उदय", कभी चन्द ना कभी "अर्चना" बन संयम अंगीकार किया है ।।
दीक्षा-स्वर्णजयन्ती पर शुभ कामना करता हूँ, महासती को अपने शब्द-सुमन समर्पित करता हूँ। उमरावकुंवरजी धर्म में बने रहें उमराव "उदय", इस सुअवसर पर हृदयगत ये भाव प्रकट करता हूँ।
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आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
प्रथम खण्ड / १७
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