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जिनकी तपस्या के समक्ष हिमालय मौन है उन्हीं सद्गुरुवर्या के सादर चरणों में
जैन साध्वी सुप्रभाकुमारी 'सुधा'
आज भी वो राहें याद करती हैं जहाँ आपके ज्ञान-दर्शन-चारित्र की त्रिवेणी प्रवाहित हुई थी। श्वेत हिम की शाल ओढ़े काश्मीर की घाटियाँ आज भी आपकी बाट जोहती हैं । सोचती हैंवह श्वेताम्बर कहाँ है ? जिसके पाने से सन्तप्त-मानस मधुवन के गीत गुन-गुनाने लगा था। जिसकी चरणगति के समक्ष पहाड़ी झरने रुक गये थे, जिसके सुदर्शनार्थ हिमाच्छादित शृखलाएँ नमित हो गयी थीं। झील में तैरते हिमखण्डों ने ज्ञान के सूर्य से बात को थी
आज भी हिमखण्ड सोचते हैंज्ञान का वह सूर्य कब लौट कर आएगा? जो हमें ऊष्म कर विहार कर गया था। अापके दिव्य रूप को देख परिन्दे उस वर्ष शीत को छोड़ मैदानों को नहीं गये थे, वह आश्चर्यचकित थे हमसे भी निर्मुक्त-निर्बन्ध श्वेत पंख फैलाए संयम की मुंहपत्ति बांधे त्याग का मुक्तहार पहने यह कौन दिव्या गगन से उतरी है ?
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वदन की
अर्चनार्चन / १६
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