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धन्य : धन्य : अतिधन्य
0 जिनेन्द्रमुनि "काव्यतीर्थ"
धन्य सती श्री अर्चना, धन्य दादिया ग्राम । धन्य आपकी साधना, धन्य आपके काम ।। लघुवय में दीक्षा ग्रही, विधिवत् पाया ज्ञान । जैन जगत में आपको, मिला बहुत सम्मान ।। प्रान्त-प्रान्त में घूमकर, करते धर्म प्रचार । मधुर मधुरतम आपका, अमृतमय व्यवहार ।। दया अहिंसा प्रेम की, सदा बहाते गंग । ध्यान-योग है अापके, जीवन का मुख अंग ।। निर्मल चिन्तन में सदा, निरत आपका चित्त । जिनवाणी-संगान है, श्लाध्य आपका वित्त ।। मुनि मधुकर से आपने, पाया ज्ञान विशेष । वही ज्ञान-गुण प्रापसे, पाते रहें हमेश ।। अभिनन्दन चाहा नहीं, लेकिन हो हकदार । "मुनि जिनेन्द्र" के कीजिए, भाव-सुमन स्वीकार ।।
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
प्रथमखण्ड / १५
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