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________________ महासतीजी म. के अनुपम व्यक्तित्व से प्रभावित कविहृदय मुनिवयं के भाव-स्पन्दन शासनचन्द्रिका : अर्चनाजी वाणीभूषण श्री सुरेशमुनि वीर प्रभु का शासन प्यारा, चार तीर्थ जिसमें सुखकार । साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका, तीर्थराज यही प्रियकार ।। १ ॥ चन्दनबाला श्रमणी-प्रमुखा, शिरोमणि साध्वी-सिरताज । श्रमणीवृन्द के साथ संघ को, जिन पर होता है अति नाज ॥ २ ॥ जैन संघ की दिव्य दीपिका, एक-एक है हीर कणी। सती संघ की शान-पान है, सती संघ की दिव्य मणी ।। ३ ।। उसी वर्ग की दिव्य साधिका, सरल सौम्य शुभ संयमवान । महासती उमरावकुंवरजी, परम गुणी जिनशासन शान ।। ४ ।। मंजुल आभा मरु वसुधा की, मालव-ज्योति बनी महान् । युवाचार्य मधुकर की शिष्या, ध्यान योग में प्रखर सुजान ।। ५ ।। श्रमण-संघ को भव्य चन्द्रिका, काश्मीर में किया प्रचार । जैन धर्म-दर्शन की वेत्ता, महा साधिका शोभाकार ।। ६ ।। प्रवचनकर्वी सती अर्चना, युग-युग धर्म प्रसार करे । इनको सत् शिक्षाएँ पाकर, भविजन गुण पल-पल निखरे ।। ७ ।। दीक्षा स्वर्ण-जयंती पर शुभ, अभिनन्दन कर लें स्वीकार । मंगल भाव भरा शब्दों का ग्रहण करें यह नव उपहार ॥ ८ ॥ 00 आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की अर्चनार्चन / १४ Jan Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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