SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - महासती के सुदीर्घ एवं मंगलमय जीवन की कामना सभी के मन की भावना है गुण गौरव गुणवन्त का 0 सुव्रतमुनि "सत्यार्थी", शास्त्री, एम. ए. (हिन्दी-संस्कृत) गुण गौरव गुणवन्त का, गाता है संसार । गुण-कीर्तन से गुण बढ़ें, कहते सन्त पुकार ।। धार्मिकता है गौरव गुण का। तप संयम है भूषण उनका ।।१।। जिस जीवन में ये आ जाएं। पूज्य वही सबका बन जाए ।।२।। उमरावकुंवरजी महत्तरा । अध्यात्मभाव में अनुत्तरा ॥३॥ ये हैं अति ही ज्ञानी ध्यानी। महिमा इनकी जानी मानी ।।४।। संयममय जीवन सरसाया । मातृपितकुल हरषाया ।।५।। श्रीसरदारकुंवरजी गुरुणी। जिनकी महिमा जाय न वरणी ।।६।। शिष्या उनकी ये महनीया । गुणगण में अनुपम गणनीया ।।७।। जन-जन में है कीति पाई। शिष्या भी हैं बहुत बनाई ।।८।। बहुतेरे हैं लोग सुधारे। तपमय अर्धशताब्द गुजारे ।।६।। दीक्षा स्वर्णजयन्ती आई । सुनकर मानवता हरषाई ।।१०।। जैन संघ में श्रद्धा अनुपम । अभिनन्दन प्रायोजन उत्तम ।।११।। वर्धापित करता "मुनि सुव्रत” । उज्ज्वल यश फैले गुण-आवृत ।।१२।। 00 आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की प्रथम खण्ड / १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy