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आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
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मंगलाष्टक
दिव्य योग की साधिका, महासती उमराव । गुणसंपूजित अर्चना, जग संमानित भाव ॥ १ ॥ विलसित मन अध्यात्म में, भव्य साधना साथ । शुभ्र 'कीर्ति शोभित मही, सकल नमावत माथ ||२॥ मुनि हजारिमल दीक्षिता, सति सरदार- निदेश | अमर कीर्ति जिनकी जगत्, अचित भाव विशेष || ३॥
जयमल कीर्ति सुहावनी, युवाचार्य-गुणजोत । दीपित धर्मवसुंधरा, जगमगात गुणजोत ||४||
अनुपम अनुपा मात अरु पितु मांगी तातेड़ । हुए यशस्वी मात-पितु वसे दादिया खेड़ ।।५।।
मरुधरकेसरि गुरु करें, दिग्दिगन्त प्रचित रहे, हैं
अमरयशा उमराव | ग्राशिष के भाव || ६ ||
सतियों में उमरावसी, हो उमराव महान । जग गावे गुणसंपदा, चर्चित मान जहान ||७|
" सुकन" भाव शोभित रहे, विकसित हो दिनरात । गंगधार जिमि सोहती, विमलवाणि सरसात ||८||
- श्रमण सूर्य मरुधर केसरी श्री मिश्रीमलजी म० सा० के शिष्य - मरुधराभूषण उपप्रवर्तक श्रीसुकनमलजी म० सा०
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अर्चनार्चन / १२
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