SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योग तथा नारी-रोग / २४३ गर्भाशय का केन्सर हो जाता है। ऐसी महिलाओं में अगर यह बीमारी तीसरी अवस्था में है जिसमें पूरा गर्भाशय बाहर निकल आता है तो उन्हें में गर्भाशय निकालने की सलाह देता हूँ जिससे वे अन्य बीमारियों से बच सकें, लेकिन यह बीमारी यदि प्रथम तथा दूसरी अवस्था में है जिसमें केवल गर्भाशय का मुँह ही बाहर निकलता है उस समय मूलबंध उड्डयानबंध, जालंधरबंध महाबंध का अभ्यास काफी लाभदायी सिद्ध हुआ है, लेकिन तीसरी अवस्था में तो श्रपरेशन ही उपाय है । संभोग के समय दर्द इस बीमारी को डिसपारयूनिया कहते हैं। यह बीमारी के कारण भी हो जाता है तथा मानसिक संतुलन ठीक न होने पर भी होता है। ऐसी महिलाओं को हमेशा यह डर बना रहता है कि संभोग के समय बहुत पीड़ा होगी। ऐसा होने पर महिला श्रौर पुरुष दोनों को समझना चाहिये । शव प्रासन और योगनिद्रा के अभ्यास से शरीर के अन्दरूनी भाग पर तनाव कम हो जाता है तथा इस बीमारी का प्रकोप नहीं होता हैं । योग की कौन कौन-सी सावधानियां कहाँ कहाँ मदद पहुँचाती हैं १. मूलबंध और विपरीतकरणी मुद्रा द्वारा गर्भाशय को नोचे खिसकने से रोका जा सकता है। २. मूलबंध और अश्वनीमुद्रा पेल्विक डायफ्राम को मजबूत करते हैं। इसी डायफाम पर बच्चेदानी टिकी रहती है। बार बार पेशाब का आना और बच्चेदानी का नीचे खिसकना इन क्रियाओं से रुकता है । ३. विपरीतकरणी मुद्रा पेट और पेट के नीचे वाले भागों के सभी रोगों को दूर करने में सहायक है । ४. उड्डयानबंध पेट के लिये तो लाभदायी है, साथ ही बच्चेदानी की भी ऊर्धरेत्ता प्राप्त होती है । ५. योग मुद्रा के द्वारा पेट के नीचे वाले भाग पर एड़ियों का दबाब होने से उन अंगों में रक्त का प्रवाह समुचित रूप से ठीक बना रहता है। सर्वांग एवं हलासन, शीर्षासन पिट्यूटरी ग्रंथि को नियंत्रित करते हैं जिससे ये ग्रंथियाँ स्वस्थ बचाव प्रदान करती हैं । बनी रहती हैं, तथा रोगों से ६. सुपारीनल ग्रन्थि मूत्रपिंड के ऊपर की ग्रन्थि गर्भाशय पर प्रभाव डालती है। इसी प्रकार थायरायड का प्रभाव गर्भाशय पर पड़ता है, इसलिये वे प्रासन जो इन ग्रन्थियों को शक्ति प्रदान करते हैं वे गर्भाशय को शक्ति प्रदान करेंगे। इनका प्रभाव मूत्रपिंड के ऊपर की ग्रन्थियों पर होता है। थायरायड ग्रन्थि के लिये हल आसन, सर्वांग आसन और कर्ष पीड़ा आसन लाभदाई है । नाड़ीशोधन प्रणायाम, बंध और मुद्रा की क्रियाओं से नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ स्वस्थ रहती हैं और स्त्री रोग निवारण में लाभदायी हैं । ७. मासिक धर्म के समय सभी प्रासन वर्जित हैं । । ८. गर्भिणी अवस्था के शुरू के ३ माह बाद कोई भी कठिन प्रासन नहीं करना चाहिये । ९. प्रत्याहार धारण के अभ्यास से मानसिक बीमारियां तो दूर होती ही हैं लेकिन ये Jain Education International For Private & Personal Use Only आसनस्थ तम आत्मस्थ मन तब हो सके आश्वस्त जम www.jainglibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy