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________________ पंचम खण्ड / २४४ .अचेनार्चन -- - क्रियायें स्त्रीरोग निवारण में बहत अधिक लाभदायी सिद्ध हई हैं। योग-साधना का अभ्यास स्त्री-पुरुष दोनों कर सकते हैं पर ध्यान यह रखना होगा कि ये क्रियायें अपनी क्षमता के अनुसार यथाशक्ति धीरे-धीरे करें और प्रतिदिन उनका अभ्यास बढ़ावें। मैं तो यह सलाह देता हूँ कि अगर यह योगासन किया जाय तो सभी वर्गों को लाभ पहुँच सकता है। योग तथा ध्यान के विषय में स्त्री पुरुष का कोई भेदभाव नहीं है कि कुछ क्रियायें केवल युवक ही कर सकते हैं तथा कुछ क्रियायें स्त्रियाँ ही कर सकती हैं। हर व्यक्ति को अपने शरीर की स्थिति के अनुसार योग-क्रियायें करना चाहिये। योग में जल्दबाजी नहीं करना चाहिये । किताब को पढ़कर योग का अभ्यास कदापि न करें। शुरू-शुरू में किसी प्रशिक्षक योग-साधक की उपस्थिति में योग-क्रियायें करना अनिवार्य है। योग-साधना एक दिन का व नहीं है। जिस प्रकार हम प्रतिदिन नियमित रूप से शरीर को चलाने के लिये खाना खाते हैं उसी प्रकार से योग का अभ्यास भी प्रतिदिन नियमित रूप से करना चाहिये, उससे आपका मानसिक, शारीरिक दोनों प्रकार का स्वास्थ अच्छा रहेगा। आजकल शहर के प्रत्येक कोने-कोने में योग-स्वास्थ केन्द्र दिखाई देते हैं, जिनमें योग आसन को ही प्राथमिकता दी जाती है। योग एक वैज्ञानिक पद्धति है और योगविज्ञान सिर्फ योगासन ही नहीं है। योग-प्रासन से शारीरिक विकास तो ठीक रहेगा लेकिन कुछ समय बाद वह व्यक्ति कोई व्यायाम जैसे दौड़ लगाना, कसरत करना, दण्ड बैठक शुरू कर देगा क्योंकि मन हमेशा चंचल रहता है। वही व्यक्ति अच्छा काम कर सकता है जिसका मन स्वस्थ है और शरीर में ताकत है। इसलिये मैं यहाँ प्रावश्यक एवं जोरदार शब्दों में कहता हूँ कि योगआसन के साथ-साथ प्राणायाम और ध्यान अवश्य करना चाहिये। एक बार प्राणायाम और ध्यान में आपकी रुचि प्रारम्भ हो गई तो आप धीरे-धीरे मन पर भी काबू पा सकेंगे जिससे प्रतिदिन उत्तरोत्तर आपकी प्रगति आगे बढ़ सकेगी। मेरा तो यह असीम विश्वास है कि योग-विज्ञान को प्रोत्साहन देने पर निश्चय ही हमारे देशवासियों का स्वास्थ एवं (मानसिक) विकास मानवीय शक्ति के लिये आवश्यक कदम होगा। नारी रोग निवारण में योग-विज्ञान एक रामबाण औषधि सिद्ध हुई है। -योग विशेषज्ञ, गीताभवन योगकेन्द्र, गीताभवन, इन्दौर (म. प्र.) 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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