________________
मंगलमय अभिनन्दन
0 गणेशमुनि शास्त्री
कारुण्य की प्रतिमूर्ति हो, तुम स्नेह की हो अमल धारा. सरलता व मधुरता का तुम लिए हो चषक प्यारा । खो दिया साहस जिन्होंने, तुमने उन्हें सम्बल दिया, मालव-ज्योति ! कर रहे सब, आज अभिनन्दन तुम्हारा ।। मरुस्थल से चल के गंगा, हिमशिखर पर चढ़ गई, कश्मीर से कन्याकुमारी, कीर्ति उज्ज्वल गढ़ गई। उन्नीस सौ चौरानवै, अगहन बदी ग्यारस रवि, दादिया ने दिव्य ज्योति, वीर पथ पर बढ़ गई। दादिया ने जो दिया वह दीप, हर पल जल रहा है, अज्ञान का घन तिमिर जिसकी, रश्मियों से टल रहा है । लेखिनी कर छु तुम्हारे, धन्य खुद को मानती है, हर मसी की बूद में, विश्वास ही तो पल रहा है। स्पष्ट है वाणी तुम्हारी, भाव भी निर्भीक हैं, माधुर्य की उस में तरंगें, उठ रही सश्रीक हैं। वर्ष पंचाशत में पाया, ज्ञान जो इस लोक में, साधना से विशद जाना, दूर क्या नजदीक है। दीक्षा स्वर्ण जयन्ती पर, मुमंगलमय अभिनन्दन करते, अंगारों से बोझिल जो पल, मुस्कानों से चन्दन करते । धन्य-धन्य हे सती अर्चना, तुम हो योग्य इसी के, "मुनि गणेश" अरु सब तारक गण, कोटि कोटि वर्धापन करते।
OD
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के तंदन की
अर्चनार्चन /१०
al Education Interational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org