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महासतीजी का तप, त्याग और शौर्य
प्रशस्तिगान - प्रवर्तक कविमनीषी मुनि रजत
सवैया छन्द महामेधावर महाविद्याधर, महासती गतिरूप धराये । योगकला शुभपातमचिन्तन, दृढ़ मनोबल साहस पाये ।। तेजमहातप-ताप-सुनायक, देशप्रदेश विहार कराये । महातितिक्षुक भव्यस्वरूप सोहे उमरावजी धन्य कहाये ॥१॥ महासती मतिसागर साधिका, अध्यातम जग की सब जानी। जैन समाज का गौरव पावन, साहित्यसाधन की परमानी । अतिमान महा हमको सुखदा श्रद्धार्चना जगताप नशानी। अद्भुत शिक्षण-कौशल उत्तम काहे लिखे नहीं जाय बखानी ।। २ ।। जैन का गौरव ज्ञान की मूरति, सो उमरावजी है सती सोई। साधन को सदसाधक सुदृढ, आतमशोधक दीपित जोई। भव्यसुभाव आलौकिक दर्शन, है महिमामयी दिव्य सुहोई। कीति विश्वविख्यात रही सद्-भव्यदिदार को जानत कोई ।। ३ ।।
प्रसीदामि रमेश मुनि शास्त्री
आर्यावृत्तम् (पथ्यार्या) उमरावकुंवरजीति नाम्नी याऽत्रार्चनेति विख्याता । साऽऽर्येति चिन्तयित्वा पथ्यार्यया लिख्यते किञ्चित् ।। १॥ वाते वाति प्रबले याति समुद्रेऽपि विक्रियां महतीम् । इयं न भजते तामपि पुरतो विषमस्थितो सत्याम् ।। २ ।। सद्रत्नत्रयभूषा मिथ्यात्वध्वान्त
नाशने पृषा। ज्ञान-ध्यान-निलीना सा भव्याया॑र्चना धन्या ।। ३ ।। जिनशासनचन्द्रस्य ज्योत्स्ना साक्षात समस्ति सा साध्वी। साऽभ्यर्चनीय-वत्ता केन न वन्द्याऽभिनन्द्या वा ।।४।। इत्थं विचार्य भव्यैर्भक्त्यामितया समर्प्यते जैनैः ।
अभिनन्दनग्रन्थोऽस्यै, तदहं ज्ञात्वा प्रसीदामि ॥५॥ प्रथम खण्ड |९
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आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
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