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________________ यम के अन्तर्गत तीसरा तथ्य 'अस्तेय' है जिसका अर्थ होता है 'चोरी न करना' । मसीहीधर्म की शिक्षाओं में दस प्राज्ञानों में से एक आज्ञा है, चोरी न करना । मत्ती १९:१६ में हम पढ़ते हैं कि एक मनुष्य प्रभु यीशुमसीह के पास आया और पूछता है कि अनन्त जीवन कैसे पाऊँ । प्रभु यीशु उत्तर देते हैं कि यदि तू जीवन में प्रवेश करना चाहता है तो श्राज्ञानों अर्चनार्चन को मानकर । पौलुस शिक्षा के रूप में रोमियों की पत्री २:२९ में लिखता है—“सो क्या तू जो श्रौरों को सिखाता है, अपने आप को नहीं सिखाता, क्या तू जो चोरी न करने का उपदेश देता है, श्राप ही चोरी करता है। प्रभु का वचन सिखाता है, 'चोरी करने वाला फिर चोरी न करें, वरन भले काम करने में अपने हाथों से परिश्रम करें। मसीहीधर्म में अस्तेय का पालन करना आवश्यक है । Jain Education International पंचम खण्ड / २१४ चौथा तथ्य 'ब्रह्मचर्य' है । ब्रह्मचर्य का अर्थ ब्रह्म के साथ, ईश्वर के साथ विचरण करना है किन्तु इसका अर्थ संयम से लिया जाता है । मसीहीधर्म संयम करने की भी शिक्षा देता है । दस आज्ञात्रों में से एक आज्ञा है "व्यभिचार न करना" (निर्गमक २० : १४) धार्मिकरूप से यह इसलिए आवश्यक है कि जो ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करता उसकी उम्र कम होती है जैसा कि अय्यूब की पुस्तक १५:२० में लिखा है कि "बलात्कारी के वर्षों की गिनती ठहराई हुई है" क्योंकि वह अपने ब्रह्मचर्य को नष्ट करता है । यहीं नहीं, ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करना परमेश्वर से बैर करना है। याकूब की पत्री ४१३४ में लिखा है, 'हे व्यभिचारिणियों, क्या तुम नहीं जानती कि संसार से मित्रता करनी परमेश्वर से बैर करना है ? यह तथ्य पुरुषों पर भी लागू होता है । प्रभु यीशु मसीह को जानने के लिए संयम प्रौर ब्रह्मचर्य की आवश्यकता है । अन्तिम तथ्य है 'अपरिग्रह' 'अपरिग्रह का अर्थ है सांसारिक वस्तुओंों का संचय न करना | मसीहीधर्म परिग्रह सिद्धान्त का भी पोषक है । भजन संहिता का लेखक बताता है कि मनुष्य " धन का संचय तो करता है परन्तु नहीं जानता कि उसे कौन लेगा " ( भजन संहिता ३९ - ६ ) वास्तव में जो परिग्रही होता है वह लोभी होता है और लोभी मनुष्य के बारे में कहा गया है कि "लोभी परमेश्वर को त्याग देता है और उसका तिरस्कार करता नीतिवचन २३:४ में कहा गया है कि “धनी होने के लिए परिश्रम न करना, अपनी समझ का भरोसा छोड़ना ।" भजन संहिता ६२ १० में कहा गया है कि "अन्धेर करने पर भरोसा मत रखो और लूट-पाट करने पर मत फूलो ।" ין गया है । मत्ती अपरिग्रह सिद्धांत के बारे में नये नियम में अधिक स्पष्टरूप से कहा ६-१९ में लिखा है "अपने लिए पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो, जहाँ कीड़ा और काई बिगाड़ते हैं और जहाँ चोर सेंघ लगाते प्रोर चुराते है।" धनवानों के विषय में कहा गया है कि परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है" ( मरकुस १०:२५) । For Private & Personal Use Only मसीहीयोग के प्रथम चरण में यम का नियम सहायक है जो कि बाह्य है । इसमें सफल होने के बाद ही हम प्रान्तरिक प्रयोग की ओर बढ़ सकते हैं । www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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