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________________ मसीही योग | २१३ कर जान ले । मुझे परख कर मेरी चिन्ताओं को जान ले और देख कि मुझमें कोई बुरी चाल है कि नहीं और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर।"२३ उपरोक्त सभी बातें जो मसीही योग में पाई जाती हैं, भारतीय योग में नहीं पाई जाती । मसीहीधर्म में विश्वास की साधना है । लिखा है "विश्वास कर तो तू और तेरा घराना उद्धार पायेगा" और यह शब्द योग की सारी प्रक्रियामों को निष्फल बना देते हैं। प्रभु यीशुमसीह प्रतिज्ञा करते हैं कि "हे थके और बोझ से दबे लोगो, मेरे पास प्रायो, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।" इतना होते हुए भी हम देखना चाहेगें कि मसीहीधर्म में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि जैसे सोपान हैं या नहीं और बैबल के आधार पर चर्चा करेंगे जो प्रभु यीशुमसीह की संगति में सहायक बनते हैं । यदि एक मसीह इनका पालन करता है, वह वास्तव में मसीही जीवन जीता है, अन्यथा नहीं । मसीहीधर्म में यम यम के अन्तर्गत (१) अहिंसा (२) सत्य (३) अस्तेय (चोरी न करना) (४) ब्रह्मचर्य तथा (५) अपरिग्रह, सांसारिक वस्तुओं को एकत्रित न करना) पर बल दिया जाता है। यदि मसीही जीवन में बढ़ना है और प्रभु की संगति करना है तो आवश्यक है कि हम यग का पालन करें। हम देखेंगे कि बैबल में यम पर किस प्रकार प्रकाश डाला गया है। पहिला तथ्य अहिंसा का है। मसीहीधर्म भी हिंसा की प्राज्ञा नहीं देता। दस प्राज्ञानों में से एक प्राज्ञा है "हत्या न करना" (निर्गमन २०: १-१७) मसीहीयोग हमें प्रेम का संदेश देता है । गलतियो ५: १९२१ में उन लोगों के बारे में बताया गया है जो प्रात्म-योग का अनुसरण नहीं करते । पौलुस स्पष्ट शब्दों में लिखता है कि "ऐसे-ऐसे काम करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे।" केवल शारीरिक हत्या करने का ही विरोध नहीं है किन्तु मनुष्य को मानसिक रूप से, वाणी के रूप से भी हत्या नहीं करना चाहिए। मसीही धर्म प्रात्म-योग के माध्यम से शरीर की लालसानों को वश में करने के लिए साधन बताता है। पौलुस गलतियो की पत्री ५:१६ में लिखता है-"आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरा न करोगे।" शरीर की लालसा तो शरीर के साथ समाप्त हो जायेगी। प्रभु यीशुमसोह ने अहिंसा का जो संदेश संसार को दिया यह समस्त महात्माओं के संदेश से बढ़कर है। उन्होंने क्रूस की मृत्यु सह ली। वे क्रूस पर से अमृतवाणी बोल रहे थे कि "हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि यह नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।" प्रभु यीशुमसीह सिद्ध पुरुष थे। अत: मसीहीधर्म की यह शिक्षा है कि मन, वचन और कर्म से अहिंसा का पालन करना चाहिए। यम के अन्तर्गत दुसरा तथ्य सत्य है । सत्य क्या है ? पिलातुस ने प्रभु यीशुमसीह से पूछा था (पूहन्ना १८:२८) प्रभु यीशुमसीह का उत्तर था, 'मार्ग और सच्चाई और जीवन में ही हूँ (पूहन्ना १६:६) मनुष्य सत्य का खोजी है, सत्य का पालन करना चाहता है, सत्य को जानना चाहता है। इस सार्वभौमिक सत्य को, सत्य की प्रात्मा की आवश्यकता है, जैसा कि बैबल में पूहन्ना १५:२६ में बताया गया है कि यह हमें पिता की ओर से मिलता है । वास्तव में सत्य को जानना और अपने को पहिचानना प्रभ यीशूमसीह को जानना और पहिचानना है । आसनस्थ तम आत्मस्थ मम तब हो सके आश्वस्त जम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.janenorary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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