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अगर आपको सचमुच प्यारी,
निन्दा करना, चुगली खाना, मानव-जीवन की हो जीत ।
माना अोछे जन का काम । सती अर्चना का है कहना,
सती अर्चना कहती इनका रहना बनकर बहुत विनीत।।१३।।
कभी नहीं अच्छा परिणाम ।।१४।। परम अहिंसा धर्माराधन,
सच्चा अर्चन अरिहन्तों का, अर्चन है अरिहन्तों का।
आप सदा सिखलाती हैं । कहा आपने सहज न पाना,
अतः "अर्चनासती" सभी से, साध्य सिद्ध भगवन्तों का ।।१५।।
सादर सदा कहाती हैं ।।१६।। खूब जगाई जग की जनता
स्वाभिमान तो रखती हैं कुछ, गहन नींद में सोई है।
कुछ पर रखतीं मान नहीं । अथक प्रचारक अथक सुधारक
कभी कहीं प्रायः जा पाता, अन्य प्राप-सी कोई है ।।१७।।
धर्मध्यान बिन ध्यान नहीं।।१८।। जैनधर्म को उन्नत करने,
खाना-पीना मिले भले न, किये आपने कितने काम ।
फिर भी चले गुजारा जी ! श्रमण संघ की सतियों में है,
जैनागम स्वाध्याय किन्तु है, अतः आपका उज्ज्वल नाम ।।१९।।
प्राणों से भी प्यारा जी ॥२०॥ राजस्थान, पंजाब, हिमाचल,
दुर्गम देख घाटियाँ जिसकी, उत्तर-मध्य प्रदेश विराट् ।
जाता कोई जैन फकीर । घूम-घूमकर धर्मसाधना
जहाँ क्यारियाँ केसर की हैं, की दरसाई सक्रिय बाट ।।२१।।
देखा जाकर के कश्मीर ।।२२।। पूज्यप्रवर आनन्दऋषीश्वर,
दीर्घ आयु हो बहुत प्रापकी, श्रेष्ठ संघ संचालक हैं।
जीयें पूरे वर्ष हजार। आप उन्हों की सही अर्थ में,
जिससे जग पर और अभी भी अभिनत आज्ञापालक हैं ॥२३॥
बहुत आप से हों उपकार ।।२४॥ दीक्षा की स्वर्ण-जयन्ती पर, करता पंजाबी मुनि चन्दन । महासती उमरावकुंवर के, संयत जीवन का अभिनंदन ।।२५।।
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आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
प्रथम खण्ड /७
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