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जिसके चरण कमलों [के स्पर्श ] से भारत-भूमि प्रसन्न हुई है और वह मंगलदर्शिनी ( सब जीवों के लिये मंगलदृष्टि वाली), प्रियकारिणी ( जीवों के लिये प्रिय करने वाली ) और शुभा ( शुभभाव वाली अथवा सावद्ययोग से विरत ) है,
उसकी शुभ प्रव्रज्या का अर्द्ध शताब्द ( पचासवाँ वर्ष ) उपस्थित होने पर मनुष्यों का वृन्द अभिनन्दन करता है
जिणवणे अणुरत्ता, धम्मस्स सुपभावणं किच्चा |
अज्जे ! भवं तरेज्जा, इइ समये भावणा मज्झ ।। १५ ।।
'हे आयें ! (आप) जिन - वचनों में अनुरक्त बनी हुई धर्म की उत्तम प्रभावना करके, भव (सागर) से पार हो जायें-' इस समय ऐसी मेरी भावना है ।
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अवार्चन-पुष्प
पण्डितप्रवर श्री हीरामुनिजी म.
( द्रुतविलम्बित ) अरचना भगती नित कीजिए । मनुज हो मुगती फल लीजिए । अरचनाज सती उमरावजी । भजन में
गुण में मन भावती ॥ १ ॥
प्रथम खण्ड / ५
जगत में जय गच्छ महान है । चमकती उसमें सति श्राप हैं ।। सरलता मृदुता मन भावती । अगम आगम बोध विभावती ॥२॥
युग-गणी मिसरीमुनि बोधिता । श्रमण संघज में सति शोभिता ।। "हिमकरो" नित ही उठ वीनवे । अमर हो उमराव सभी नवे || ३ ||
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आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
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