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________________ पंचम खण्ड | १२६ अर्चनार्चन धर्मध्यान के चार लक्षण' १. आज्ञारुचि-जिन प्राज्ञा के चिन्तन-मनन में रुचि, श्रद्धा एवं भक्ति होना। २. निसर्गरुचि-धर्म कार्यों के करने में स्वाभाविक रुचि होना। ३. सूत्ररुचि-पागम शास्त्रों के पठन-पाठन में रुचि होना। ४. अवगाढरुचि-द्वादशांगी का विस्तारपूर्वक ज्ञान प्राप्त करने में प्रगाढ़ रुचि होना। धर्मध्यान के चार आलम्बन १. वाचना-पागमसूत्र का पठन-पाठन करना । २. प्रतिपच्छना-शंका निवारणार्थ गुरुजनों से पूछना । ३. परिवर्तना-पठित सूत्रों का पुनरावर्तन करना । ४. अनुप्रेक्षा-अर्थ का चिन्तन करना । धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ १. एकत्वानुप्रेक्षा- जीव के सदा अकेले परिभ्रमण और सुख-दुःख भोगने का चिन्तन करना। २. अनित्यानुप्रेक्षा-सांसारिक वस्तुओं की अनित्यता का चिन्तन करना । ३. प्रशरणानुप्रेक्षा–जीव को कोई दूसरा धन-परिवार प्रादि शरणभूत नहीं, ऐसा चिन्तन करना। ४. संसारानुप्रेक्षा-चतुर्गति रूप संसार की दशा का चिन्तन करना । कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने योगशास्त्र में ध्यान के चार पालम्बन बताये हैं, जो इस प्रकार हैं पिंडस्थं च पदस्थं च रूपस्थं रूपजितम् । चतुर्धा ध्येयमाम्नातं ध्यानस्थालम्बनं बुधैः॥ -योगशास्त्र ७८ ज्ञानी पुरुषों ने ध्यान के पालम्बन रूप ध्येय को चार प्रकार का माना है-१. पिंडस्थ, २. पदस्थ, ३. रूपस्थ और ४. रूपातीत । १. पिंडस्थध्यान-पिण्ड का अर्थ है शरीर । शान्त, एकान्त स्थान में किसी योग्य प्रासन पर स्थिर बैठकर शरीर (पिंड) में स्थित प्रात्मदेवता का ध्यान करना पिंडस्थध्यान है। इसमें शुद्ध निर्मल पात्मा को लक्ष्य में रखकर चिन्तन किया जाता है। पिंडस्थध्यान की पांच धारणाएँ बताई गई हैं१. पार्थिवी, २. आग्नेयी, ३. वायवी, ४. वारुणी, ५. तत्त्वरूपवती। २. पदस्थध्यान यत्पदानि पवित्राणि समालम्ब्य विधीयते । तत्पवस्थं समाख्यातं ध्यानं सिद्धान्तपारगः॥ ----योगशास्त्र ८।१ १-२-३ स्थानांगसूत्र ४।१ तथा व्याख्याप्र. सू. २५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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