________________
कोटि-कोटि अभिनन्दन
सम्माननीया परमविदुषी महासती पूज्य श्री उमरावकंवरजी म. सा. अर्चना अपने जीवन में सद्विचार को नित्य गति देकर, पावन दृष्टि से जीवन की उलझी हुई गुत्थियों को धर्माचरण के द्वारा सुलझाने का सप्रयत्न करती रहती हैं। आपका हृदय विशाल है जिसमें कभी आवेग अथवा क्रोध का तूफान नहीं पाता है। जीवन दिव्यप्रकाशयुक्त है और जगत् को नूतन सन्देश देता है। आपके स्वभाव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आपके सम्मुख पाने पर या दर्शन पाकर क्रोधी व्यक्ति भी प्रसन्नमुख हो जाता है। इस स्वभाव में सागर-सी गहराई है जिसे निहार कर मानवता प्रसन्नता व्यक्त करती है।
आपकी वाणी गागर में सागर भरने की क्षमता रखती है और ऐसी विदुषियों के कारण जैनसंस्कृति ही नहीं वरन् सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति अमर है। भारत का मुख उज्ज्वल है। दीक्षा के पांच दशक पूर्ण हो जाने पर वन्दनीय भारतीय संस्कृति की रक्षिका का इस पावन अवसर पर कोटि-कोटि अभिनन्दन! शत-शत वन्दना !
- कन्हैयालाल गौड़ कवि एवं लेखक
उज्जैन
शुभकामना
मुझे यह जान कर प्रत्यन्त प्रसन्नता हो रही है कि महासती परमविदुषी साध्वी श्री उमरावकंवरजी म. सा. अर्चना की दीक्षा के ५० वर्ष पूर्ण होने पर दीक्षा स्वर्ण-जयन्ती अभिनन्दनग्रन्थ प्रकाशित होगा। मेरी दृष्टि में यह अभिनन्दनग्रन्थ साहित्य की अमूल्य निधि होकर जैसी म. सा. ज्ञानवान, गुणवान, धर्मशील एवं महिमामण्डिता हैं, उसी अनुरूप होगा।
इस पावन अवसर पर मैं दीर्घायु की मंगलकामना करते हुए हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।
-रामचन्द्र श्रीमाल
प्रधान सम्पादक दैनिक ब्रिगेडियर, उज्जैन
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
अर्चनार्चन /४८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org