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अज्ञान का सघन अन्धकार जीवन का सबसे मन रूपी सेनापति पराजित हो गया, जीवन के || बडा भयंकर अभिशाप है। जिसके फलस्वरूप संग्राम में उसने विकारों-वासनाओं के हथियार मानव को अपना यथार्थ बोध नहीं हो पाता है। डाल दिए तो सारी सेना की हार है ।
अहंकार अध्यात्म-साधना का वह दोष है-जो साधना को दुषित कर देता है।
मन एक अपार महासागर की भाँति है जिसमें से इच्छाओं की लहरें उठती रहती हैं ।
आसक्ति, ममता एवं तृष्णा का सर्वथा परि
। एव तृष्णा का सवथा पार- राग प्रियात्मक अनुभूति है, और द्वेष अप्रिया-11 त्याग ही सच्ची साधना है ।
त्मक अनुभूति है । इन दोनों अनुभूतियों से परे जो जो मानव मन को अपने वश में कर लेता है,
है वह समभाव है। मन रूपी मातंग पर ज्ञान का अंकुश लगा देता है
सत्य अपने आप में परिपूर्ण है और वह अनन्त वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्त करता
है, अक्षय है, शब्दों के माध्यम से उसकी अभिव्यक्ति
पूर्ण रूप से नहीं हो सकती है। सम्यग्-दर्शन एक ऐसी शक्ति है जिसकी प्राप्ति होने पर मनुष्य के दिव्य-नेत्र खुल जाते हैं।
___ 'ध्यान' अनुभूति का विषय है । उसे अभिव्यक्ति 0
का रूप देना कथमपि सम्भव नहीं । आत्मा को बन्धन की बेड़ियों में डालने वाला व मुक्ति में पहुँचाने वाला मन ही है ।
हमारा जीवन 'वन' नहीं 'उपवन' होना चाहिए
__ जिसमें सद्गुणों की सौरभ प्रतिपल, प्रतिक्षण रहे, Ik सम्यग्दर्शन वास्तव में एक अक्षय ज्योति है, किन्तु दुर्गुणों के कंटक अपना अस्तित्व न रखें। उसका अचिन्त्य-प्रभाव हमारी कल्पना से परे है, मति से अगोचर है।
'शिक्षा' एक ऐसी गरिमापूर्ण कला है जिससे
जीवन संस्कारमय बनता है । मन ही मन का शत्रु है, और मन ही मन का मित्र है । जीवन को दुगुणों में डालकर मन उसका आत्मा स्वभावतः प्रकाशमान सूर्य है पर उस शत्र बन जाता है और मन ही जीवन को सद्गुणों पर कर्म-मेघ आच्छादित हैं । अतः उसका दिव्य तेज की ओर ले जाकर उसका मित्र बन जाता है।
पूर्णतः प्रकट नहीं हो पाता।
___ सम्यग्दर्शन अक्षय अनन्त सुख का मूल स्रोत 'मोह' दो अक्षर का लघु शब्द है, पर इसके है । वह आत्मा की अमूल्य निधि है । इस निधि को प्रभाव से व्यक्ति बहिर्मुखी बनता है। मोह का ie प्राप्त कर आत्मा पर-भाव से विमुख होकर निज जिसमें अभाव होता है, वही माहन भगवान बनता भाव की ओर उन्मुख होती है।
मानव-जीवन संग्राम में मन ही सेनापति है, ' 'संयम' जीवन का प्राणभूत तत्व है जिसके इन्द्रियाँ उसकी आज्ञा में चलने वाली सेना हैं। सद्भाव में मानव महामानव बनता है।
सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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