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___ मंत्री मंडन पर बादशाह का बहुत प्रेम था। आलमशाह को गुजरात के बादशाह का गर्व तोड़ने
उसके सत्संग से वह भी संस्कृत साहित्य का बड़ा वाला लिखा है। अपने पिता के लिए उसने-वे या अनुरागी और रसिक हो गया था। एक दिन सायं- सत्पुरुषों में दिनमणि विरुद्धारक एवं खरतर K
काल विद्वद्गोष्ठी में बादशाह ने मंडन से कहा- मुनियों से तत्वोपदेश सुनने वाले-लिखा है और RAT मैंने कादम्बरी की बड़ी प्रशंसा सुनी है, इसकी कथा अपनी माता का नाम गंगादेवी लिखा है। सूनने की इच्छा है किन्तु बड़े ग्रन्थ को सुनने का
मालव का सुलतान गयासुद्दीन बड़ा उदार समय नहीं मिलता। तुम बड़े विद्वान हो, उसे और साहित्यप्रेमी था। उसने अपने मित्र श्रीमाली संक्षिप्त रचना कर सुनाओ। तब सुलतान की मेघ को माफर मलिक का विरुद् दिया था। उसके आज्ञा से मंडन ने चार परिच्छेदों में 'कादम्बरी
भाई जीवन के पुत्र पुजराज ने सारस्वत व्याकरण मंडन' बनाकर सुनाया।
पर टीका लिखी। एक बार पूणिमा के दिन सायंकाल मंडन मांडवगढ के सलतान महम्मद खिलजी के पहाड़ के आंगन में बैठा था। साहित्य चर्चा में विश्वासपात्र भंडारी ओसवाल संग्रामसिंह ने बुद्धिचन्द्रोदय हो गया। मंडन ने चन्द्र के उदय से लेकर सागर नामक सर्वमान्य अत्यूपयोगी ग्रन्थ की रचना - अस्त तक की अलग-अलग दशाओं का वर्णन ललित की। पद्य में किया। अस्त के समय खिन्न होकर कहासूर्य की भाँति भ्रमण करते चन्द्र का भी अधःपात साहित्य प्रेम, धर्म प्रेम और सत्संग के प्रताप हुआ, सूर्य किरणों से प्रताड़ित होकर चन्द्रमा भाग से मालव सुलतान गयासुद्दीन उदा रहा था, सूर्य ने उसे कान्तिहीन करके समुद्र में उसने राणकपुर जिनालय के निर्माता धरणाशाह | गिरा दिया। इससे सूर्य पर ऋद्ध होकर १४१ पद्यों के भ्राता रत्नसिंह के पुत्र चालिग के पुत्र सहसा में 'चन्द्रविजय' की रचना की जिसमें चन्द्रमा के को अपना मित्र बनाया था। तथा मांडवगढ़ के साथ युद्ध कराके हराया। फिर उदयाचल पर उदय संघपति वेला ने भी तीर्थयात्रा के लिए संघ निकाहोने का वर्णन कर चन्द्र की उत्पत्ति
साथ लने का फरमान प्राप्त किया था। देवास के माफर वर, चन्द्रमा की विजय और तारों के साथ विहार मलिक के मंत्री सं० देवसी ने २४ देवालय व चतूबतलाया है ।
विशति पित्तलमय जिनपट आदि बनवा के प्रति
ष्ठित किये थे। संघ यात्रा, सत्र शाला, प्रतिष्ठा काव्य मंडन में १२ सर्ग और १२५० श्लोकों में
आदि के अनेक उदाहरण हैं पर यहाँ लिखना अप्राकौरव-पांडव की कथा का वर्णन है । चम्पू मंडन में संगिक है फिर भी यह साहित्य प्रेम-सत्संग का ही ७ पटल हैं जिनमें भगवान् नेमिनाथ का चरित्र प्रताप था जिससे जीवदया के अनेक फरमान निकले वणित है।
व प्रजा के साथ सहिष्णु वृत्ति प्रोत्साहित रही। ___ मंडन का चचेरा भाई-चाचा देहड़ का पुत्र दिल्ली के सुलतान मुहम्मद तुगलक धनदराज या धनराज भी नामाङ्कित विद्वान था। उसने मंडप दुर्ग (मांडवगढ़) में सं. १४६० में भर्त- दिल्ली के तत्कालीन सुलतानों में ये सर्वाधिक हरि शतक की भाँति ही शृंगार धनद, नीति धनद उदार सम्राट हुए हैं। खरतरगच्छाचार्य महान और वैराग्य धनद संज्ञक धनद त्रिशती की रचना प्रभावक श्री जिनप्रभसूरिजी के सम्पर्क में आने की। उसकी प्रशस्ति में मांडव ने बादशाह गौरी पर सुलतान जैन धर्म के प्रति बड़ा श्रद्धालु हो गया
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चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम :
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ