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सम्राट अलाउद्दीन खिलजी
दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी के मन्त्रि मंडल में ठक्कुर फेरू चिरकाल रहा था । वह परम जैन ठक्कर चन्द्र का पुत्र और धाँधिया गोत्रीय श्रीमाल था । उसने अपने ग्रंथों में सुलतान को कलिकाल चक्रवर्ती लिखा है । वह कन्नाणा ( महेन्द्रगढ़ ) निवासी था । उसने सं. १३७२ में सम्राट के रत्नागार के अनुभव से रयणपरीक्खा ( रत्न परीक्षा ) ग्रन्थ की रचना की जिसका अनुवाद मैंने कई वर्ष पूर्व करके प्रकाशित किया था । उसी वर्ष : फेरू ठक्कुर ने 'वास्तुसार ग्रंथ का निर्माण किया, जिसमें देवालय प्रतिमाओं की अनेक विधाओं के सम्बन्ध में विशद् वर्णन है । पं० भगवानदास जैन ने इसे सानुवाद प्रकाशित किया । इसी वर्ष ठक्कुर फेरू ने ४७४ श्लोकों में ज्योतिषसार की रचना की । गणितसार भी ३११ गाथाओं में रचित है जिसमें क्षेत्रों के माप, मुकाता, राजकीय कर आदि सभी विषय के गणित का विषय प्रतिपादित है । सं. १३७५ में फेरू दिल्ली टकसाल के गवर्नर पद पर नियुक्त था । वहाँ भी इस प्रतिभाशाली विद्वान ने गहरा अनुभव प्राप्त किया और उसके आधार से १४६ श्लोकों में द्रव्य परीक्षा ग्रन्थ का निर्माण किया । इस ग्रन्थ में उस समय प्राप्य चंदेरी, देवगिरि, दिल्ली, मालव, मुल तान कशालों के बने सिक्कों के अतिरिक्त खुश सान आदि के विदेशी सिक्कों का भी वर्णन है । तत्कालीन प्राप्त सिक्कों में विक्रम, तोमर राजाओं, कांगड़ा के तथा अनेक सिक्कों में कितना प्रतिशत सोना, चाँदी, तांबा है और तत्कालीन सिक्के के विनिमय का मोल तोल आदि वर्णित है । धातु शोधक आदि के प्रकार भी लिखे हैं । कहना न होगा कि मुस्लिम शासन के उस समय तक के सभी सिक्कों का वर्णन है । यह ग्रन्थ विश्व साहित्य में
है जिसका मेरे अनुवाद का प्रकाशन वैशाली के प्राकृत जैन शास्त्र अहिंसा शोध संस्थान से हुआ है । अलीगढ़ यूनीवर्सिटी के प्रोफेसर एस. आर.
चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम
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शर्मा इसका अंग्रेजी अनुवाद सम्पादन कर रहे हैं तथा रत्न परीक्षा का अंग्रेजी अनुवाद उन्होंने प्रकाशित भी करवा दिया है । द्रव्य परीक्षा के साथ ही ठक्कुर फेरू का धातुत्पत्ति ग्रन्थ ( गा० ५७ ) वैशाली से प्रकाशित है ।
ठक्कुर फेरू के अन्य ग्रंथों में युगप्रधान चतुष्पदिका (सं. १३४७) प्रकाशित है परन्तु भू-गर्भशास्त्र अभी तक अप्राप्त है । सं. १४०४ की प्रति का १ पत्र लुप्त है, संभवतः उसी में वह था । मालवा-मांडवगढ़ के सुलतान
मुस्लिम शासकों के विशिष्ट मंत्रियों में मांडव - गढ़ के श्रीमाल सोनगरा वंश के मंडन और धनदराज का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है । ये वहाँ के सुलतान के मंत्री थे । समकालीन पं० महेश्वर कृत काव्य मनोहर में इनका परिचय दिया है । मं. झांझण के छः पुत्र थे जो वहाँ के सुलतान के मंत्री थे । द्वितीय पुत्र बाहड़ का पुत्र मंडन मांडवगढ़ के सुलतान का मंत्री था । अलपखानआलमखान होशंग शाह गोरी ने ३ वर्षं राज्य किया था । सं. १४६० में मुहम्मद खिलजी होशंग शाह की खिताब धारण कर गद्दी पर बैठा जिसने सं. १५०५ तक राज्य किया । उसके पुत्र गयासुद्दीन ने सं. १५५६ तक राज्य किया था। मंत्री मंडन और धनदराज एवं उनके ग्रन्थों का परिचय दिया जाता है ।
मंत्री मंडन व्याकरण, अलंकार, संगीत तथा अन्य शास्त्रों का महान् पण्डित था । उसने १ सारस्वत मंडन, २ काव्य मंडन, ३ चम्पू मंडन, ४ कादम्बरी मंडन, ५ अलंकार मंडन, ६ चन्द्र विजय, ७ शृंगार मंडन, ८ संगीत मंडन, & उपसर्ग मंडन, १० कवि कल्पद्र म नामक ग्रन्थों का निर्माण किया । इसकी प्रति सं. १५०४ में विनायक दास कायस्थ के हाथ से लिखी हुई पाटण के ज्ञान भण्डार में विद्य
मान
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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