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दण्ड विधान पर संक्षेप जो अपराध शास्त्र पर ग्रन्थ पर्याप्त मार्गदर्शन प्रदान यहाँ उद्धृत किया जाता है
चोर-कर्म - उस समय अपराधों में चौर्य-कर्म प्रमुख था । चोरों के अनेक वर्ग इधर-उधर कार्य रत रहते थे। लोगों को चोरों का आतंक हमेशा बना रहता था | चोरों के अनेक प्रकार थे
(१) आमोष - धन-माल को लूटने वाले । (२) लोमहार - र-धन के साथ ही प्राणों को लूटने वाले ।
विवरण दिया है, वह तैयार करने के लिए करता है । उसी को
(३) ग्रन्थि - भेदक - ग्रन्थि - भेद करने वाले । (४) तस्कर - प्रतिदिन चोरी करने वाले । (५) कण्णुहर - कन्याओं का अपहरण करने वाले ।
लोमहार अत्यन्त क्रूर होते थे । वे अपने आपको बचाने के लिए मानवों की हत्या कर देते थे । ग्रन्थिभेदक के पास विशेष प्रकार की कैंचियाँ होती थी जो गाँठों को काटकर धन का अपहरण करते थे ।
निशीथ भाष्य में आक्रान्त, प्राकृतिक, ग्रामस्तेन, देशस्तेन, अन्तरस्तेन, अध्वानस्तेन और खेतों को खनकर चोरी करने वाले चोरों का उल्लेख है ।
कितने ही चोर धन की तरह स्त्री-पुरुषों को भी चुरा ले जाते थे । कितने ही चोर इतने निष्ठुर होते थे कि वे चुराया हुआ अपना माल छिपाने को अपने कुटुम्बीजनों को मार भी देते थे । एक चोर अपना सम्पूर्ण धन एक कुएँ में रखता था । एक दिन उसकी पत्नी ने उसे देख लिया, भेद खुलने के भय से उसने अपनी पत्नी को ही मार दिया । उसका पुत्र चिल्लाया और लोगों ने उसे पकड़ लिया ।
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भगवान महावीर : एक अनुशीलन, पृष्ठ ८२-८३
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उस समय चोर अनेक तरह से सेंध लगाया करते थे- १. कपिशीर्षाकार २. कलशाकृति ३. नंदावर्त संस्थान ४. पद्माकृति ५. पुरुषाकृति ६. श्रीवत्स संस्थान |
चोर पानी की मशक और तालोद्घाटिनी विद्या आदि उपकरणों से सज्जित होकर प्रायः रात्रि के समय अपने साथियों के साथ निकला करते थे ।
चोर अपने साथियों के साथ चोरपल्लियों में रहा करते थे । चोरपल्लियाँ विषम पर्वत और गहन अटवी में हुआ करती थीं । जहाँ पर किसी का पहुँचना सम्भव नहीं था ।
दण्ड- विधान - चोरी करने पर भयंकर दण्ड दिया जाता था । उस समय दण्ड व्यवस्था बड़ी कठोर थी । राजा चोरों को जीते जी लोहे के कुम्भ में बन्द कर देते थे, उनके हाथ कटवा देते थे । शूली पर चढ़ा देते थे। कभी अपराधी की कोड़ों से पूजा करते । चोरों को वस्त्र युगल पहनाकर गले में कनेर के फूलों की माला डालते और उनके शरीर को तेल से सिक्त कर भस्म लगाते और चौराहों पर घुमाते व लातों, घूसों, डण्डों और कोड़ों से पीटते । ओंठ, नाक और कान काट देते, रक्त से मुँह को लिप्त करके फूटा ढोल बजाते हुए अपराधों की उद्घोषणा करते ।
तस्करों की तरह परदारगमन करने वालों को भी सिर मुंड़ाना, तर्जन, ताड़ना, लिंगछेदन, निर्वासन और मृत्युदण्ड दिये जाते थे। पुरुषों की भाँति स्त्रियाँ भी दण्ड की भागी होती थीं, किन्तु गर्भवती स्त्रियों को क्षमा कर दिया जाता था। हत्या करने वाले को अर्थदण्ड और मृत्युदण्ड दोनों दिये जाते थे ।"
कारागृह का विवरण इस प्रकार दिया गया
'कारागृह की दशा बड़ी दयनीय थी । अपरा
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चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम
साध्वीरत्न ग्रन्थ
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