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ऋषभदेव ने कहा-"जनता में अपराधी मनो- छविच्छेद-करादि अंगोपांगों के छेदन का वृत्ति नहीं फैले और मर्यादाओं का यथोचित पालन दण्ड देना। हो उसके लिए तीन प्रकार की दण्ड व्यवस्थाओं का
ये चार नीतियाँ कब चलीं, इनमें विद्वानों में प्रचलन हआ था, अब कालानुसार अपराधों में
विभिन्न मत हैं। कुछ विज्ञों का मन्तव्य है कि वद्धि हो रही है, मर्यादाओं का अतिक्रमण हो रहा
प्रथम दो नीतियाँ ऋषभदेव के समय चलीं और 5 है उनके शमन-निमित्त अन्य दण्ड व्यवस्थाओं का
और दो भरत के समय । आचार्य अभयदेव के । विधान आवश्यक हो गया है और यह व्यवस्था
मन्तव्यानुसार ये चारों नीतियाँ भरत के समय राजा ही कर सकता है क्योंकि शक्ति के समस्त
चलीं । (स्थानांग वृत्ति ७/३/५५७, आवश्यक भाष्य स्रोत उसमें केन्द्रित होते हैं। तत्पश्चात् ऋषभदेव
गाथा ३) । आचार्य भद्रबाहु और आचार्य मलयप्रथम राजा बने और उन्होंने सारी व्यवस्था की।
गिरि के अभिमतानुसार बन्ध (बेड़ी का प्रयोग) ऋषभदेव ने अपने शासनकाल में दण्ड नीति का
और घात (डण्डे का प्रयोग) ऋषभनाथ के समय जो निर्धारण किया उसका विवरण साहित्य मनीषी
में आरम्भ हो गये थे। (आवश्यकनियुक्ति, गाथा || उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनि जी ने इस प्रकार दिया
२१७, आवश्यक मलयगिरिवृत्ति, १९६-२०२) । का
और मृत्यु दण्ड का आरम्भ भरत के समय हुआ। "शासन की सुव्यवस्था के लिए दण्ड परम (आवश्यकनिर्यक्ति २१८, १९६/२)। जिनसेनाआवश्यक है। दण्डनीति सर्व अनीति रूपी सपों को चार्य के अनसार बध-बन्धनादि शारीरिक दण्ड वश में करने के लिए विषविद्यावत् है। अपराधी भरत के समय चले । (महापुराण ३/२१६/६५) उस
को उचित दण्ड न दिया जाये तो अपराधों की संख्या समय तीन प्रकार के दण्ड प्रचलित थे जो अपराध SH निरन्तर बढ़ती जायेगी एवं बुराइयों से राष्ट्र की के अनुसार दिये जाते थे-(१) अर्थहरण दण्ड (२)
रक्षा नहीं हो सकेगी। अतः ऋषभदेव ने अपने शारीरिक क्लेश रूप दण्ड (३) प्राणहरण रूप दण्ड । समय में चार प्रकार की दण्ड व्यवस्था निमित (आदि पुराण : ४२/१६४)।"
___ उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री संस्कृत, (१) परिभाष, (१) मण्डल बन्ध, (३) चारक,
प्राकृत के प्रकाण्ड विद्वान् तो हैं ही, वे आगम मर्मज्ञ ||KS (४) छविच्छेद ।
भी हैं । अनेकानेक ग्रन्थों का आलोड़न कर अद्यावधिक _परिभाष-कुछ समय के लिए अपराधी व्यक्ति
आपने अनेक अमूल्य ग्रन्थ रत्नों से माँ भारती के | को आक्रोशपूर्ण शब्दों में नजरबन्द रहने का दण्ड
भण्डार को अभिवृद्धि की है । 'भगवान् महावीर : || देना।
एक अनुशीलन' नामक शोध प्रधान ग्रंथ में आपने ____ मण्डल बन्ध-सीमित क्षेत्र में रहने का दण्ड
उत्तराध्ययन सुखबोधा, अंगुत्तर निकाय, निशीथ-15) देना।
भाष्य, उत्तराध्ययन चूर्णि, उत्तराध्ययन बृहद् वृत्ति, || चारक-बन्दीगृह में बन्द रहने का दण्ड ज्ञातृधर्मकथा, दशकुमार चरित, विपाक सूत्र, प्रश्न देना।
व्याकरण आदि ग्रन्थों के आधार पर अपराधों और
की।
१ ऋषभदेव : एक परिशीलन, पृष्ठ १४० २. वही, पृष्ठ १४३-१४४
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