________________
और समारोह के साथ आपका नगर प्रवेश करवाया। इस वर्ष यानी वि. सं. २०३८ में आचार्यश्री
नानालालजी महाराज सा. का चातुर्मास भी उदयपुर में ही था। दूसरी ओर आपका था। आपके का व इधर भी लोगों में बहुत उत्साह था, प्रवचनों में उपस्थिति अच्छी रहती थी।
उपाधि से विभूषित-आपका आध्यात्मिक जीवन प्रेरणा का केन्द्र बन चुका था। आपके आध्यात्मिक जीवन से प्रभावित होकर उदयपुर श्रीसंघ की ओर से माननीय श्रीमान कन्हैयालाल जी नागौरी ने आपको 'अध्यात्मयोगिनी' की उपाधि से विभूषित किया।
विभिन्न धार्मिक क्रियाओं के साथ उदयपुर का यह चातुर्मास सानन्द सम्पन्न हुआ।
___ गुरुदेव की सेवा में-सुदीर्घकाल से आपने गुरुदेव श्री पुष्करमुनिजी म. सा. के दर्शन नहीं कर SIR किये थे। गुरुदेव के दर्शनों की आपकी अभिलाषा बलवती हो रही थी । इन दिनों गुरुदेव श्री पुष्कर | मुनिजी म. सा. अपनी शिष्यमण्डली के साथ राखी वर्षावास सम्पन्न कर पाली मारवाड़ विराज रहे ।
। गुरुदर्शन की तीव्र अभिलाषा लिए आपने अपनी शिष्याओं के साथ पाली की ओर विहार कर - दिया । गुरुदेव के दर्शन लम्बे समय से न होने का कारण यह था कि गुरुदेव दक्षिण भारत में विचरण | करते हुए धर्म प्रचार कर रहे थे और आप उत्तर भारत में विचरण कर रही थीं।
महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा. अपनी शिष्याओं और प्रशिष्याओं के साथ पाली पहुँची, गुरुदेव के दर्शन कर अपार प्रसन्नता का अनुभव किया। कुछ दिन गुरुदेव के सान्निध्य में रहकर फिर विहार कर दिया।
'प्रवचनभूषण' से विभूषित-वि. सं. २०३६ का आपका चातुर्मास ब्यावर श्रीसंघ के आग्रह से ब्यावर में हुआ। श्रीसंघ ब्यावर में अच्छी धार्मिक जागृति है। उत्साह भी पूरे चातुर्मास काल में अच्छा रहा। ब्यावर को धर्मनगरी भी कहा जाता है। यहाँ तपस्याएँ भी बहुत रहीं और प्रवचनों की भी खूब धूम रही। आपके ओजस्वी, ज्ञानभित, प्रभावोत्पादक प्रवचनों से प्रभावित होकर श्रीसंघ ब्यावर ने आपको 'प्रवचनभूषण' उपाधि से विभूषित किया।
आपके साधनामय जीवन एवं वैराग्योत्पादक उपदेशों से प्रभावित होकर ब्यावर में रह रहे जामोला निवासी श्री नोरतनमल जी बोहरा की पुत्रियाँ कुमारी शकुन और कुमारी शान्ता के हृदय में वैराग्य भावना जागृत हुई। आगम रहस्य समझने का अवसर
वि. सं. २०४० में आपका चातुर्मास गुरुदेव श्री की सेवा में मदनगंज में हुआ। इस चातुर्मास में गुरुदेव से आगम के रहस्यों को समझने-समझाने का विशेष अवसर प्राप्त हआ। ज्ञानाराधना की दृष्टि से यह चातुर्मास विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा। दीक्षा और विहार
चातुर्मास समाप्ति के पश्चात् श्रीसंघ किशनगढ़ के विशेष आग्रह से व्यावर. निवासी वैरागिन Cil बहिन शकुन कुमारी का वैराग्य परिपक्व होने पर भागवती दीक्षा सोत्साह सम्पन्न हुई। नाम साध्वी श्री
( अनुपमा म० रखा गया। बहुत समय से किशनगढ़ में कोई दीक्षा नहीं हुई थी। इस कारण इस दीक्षो| त्सव में अत्यधिक उत्साह था। संत-सतियां भी इस अवसर पर विशेष रूप से पधारे थे। जिससे समाB. रोह की शोभा द्विगुणित हो गई थी। दीक्षा प्रदान करने के पश्चात् गुरुदेव श्री पुष्करमुनिजी म. सा.
आदि समस्त संत रत्नों ने दिल्ली की ओर विहार किया और महासती श्री कुसूमवती जी म. सा. ने अजमेर की ओर।
Ec
द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
20
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
KIN
Jain Saration International
For Paivate & Personal Use Only
www.jainelibrary.org