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1. फूलचन्द जी म. सा. और महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा. के मध्य शास्त्रीय चर्चा हुई, अनेक गहन
ला प्रश्न हुए, जिनके आपने सटीक उत्तर दिये। साध्वीवृन्द का मिलन बहुत ही मधुर रहा। मुनिवृन्द और 2. साध्वीवृन्द के साथ आपके ओजस्वी प्रवचन भी हुए।
लुधियाना से बिहार कर अम्बाला, करनाल, पानीपत होते हुए आप उत्तरप्रदेश के कांधला क्षेत्र में पधारे । कांधला पूज्य श्री काशीरामजी महाराज आदि बड़े-बड़े सन्तों की दीक्षा भूमि रही है। कांधला के निवासी बहत ही श्रद्धालु और धर्मनिष्ठ हैं। श्री संघ कांधला ने वैरागिनों की दीक्षा की । विनती की। उनकी अनुरोध भरी विनम्र विनती को मान देते हुए महासती श्री कुसुमवती जी म. सा. ने स्वीकृति फरमा दी । बड़े उत्साह के साथ दीक्षा की तैयारियां आरम्भ हो गयीं। दीक्षा के प्रसंग पर मेरठ में विराजित उत्तर भारतीय प्रवर्तक श्री शांतिमुनि जी म० सा० को आमन्त्रित किया गया। अस्वस्थ होने के कारण वे पधारने में असमर्थ थे उन्होंने अपने शिष्य तपस्वीरत्न श्री सुमति प्रकाशजी म.सा., श्री विशाल मुनिजी म. सा. आदि मुनिराजों को भेजा, जिससे दीक्षोत्सव में चार चाँद लग गए। 10
दीक्षा के दिन हाथी, घोड़े, रथ, पदाति एवं सुन्दर-सुन्दर झाँकियां से युक्त जुलूस बहुत लम्बा था। सबसे अन्त में हाथी पर सवार वैरागिन बहिनें थीं। जुलूस का स्थान-स्थान पर जलपान, शरबत आदि से स्वागत किया गया था। सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि जैन मतावलम्बियों के अतिरिक्त बिना किसी भेदभाव के अजैन मतावलम्बी भी जलपानादि से स्वागत कर रहे थे। दीक्षा-स्थल पर अपार जनमेदिनी के बीच वैरागिनों को तपस्वीरत्न मुनिश्री सुमतिप्रकाश जी म० सा० ने दीक्षा मन्त्र प्रदान किया। मेरठ निवासिनी वैरागिन गीताकुमारी का नाम साध्वीश्री गरिमाजी म. सा. तथा जम्मू | निवासिनी वैरागिन शान्ताकुमारी का नाम साध्वी श्री रुचिकाजी म. सा. रखा। साध्वी श्री गरिमाजी म. सा. आपकी तृतीय शिष्या बनीं। साध्वी श्री रुचिकाजी म. सा. को महासती श्री चारित्रप्रभाजी म. सा. की शिष्या घोषित किया गया।
राजस्थान में-दीक्षा के पश्चात् आप अपनी शिष्यामण्डली के साथ मेरठ, दिल्ली होते हुए राजस्थान पधारे। श्रीसंघ अलवर वर्षों से अपने यहाँ चातुर्मास करने के लिए विनती करता आ रहा है था। अलवर श्रीसंघ की आग्रह भरी विनती महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा. के ध्यान में थी और उनकी इस बार की विनती को मान प्रदान करते हुए वि. सं. २०३७ के चातुर्मास के लिए अलवर श्रीसंघ को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। चातुर्मासार्थ अलवर पधारने पर अलवर की धर्मप्राण जनता ने आपका तथा आपकी शिष्याओं का हार्दिक स्वागत किया।
___ चातुर्मास काल में धर्म की गंगा प्रवाहित हुई। श्रीसंघ में एक समान उत्साह बराबर बनाए रहा । विभिन्न धार्मिक क्रियाओं के साथ उल्लासमय वातावरण में चातुर्मास समाप्त हुआ।
मातृभूमि में- चातुर्मास की समाप्ति के पश्चात् अलवर की धर्मप्रिय जनता ने अश्रुपूरित नेत्रों से आपको विदाई दी। अलवर से विहार कर विभिन्न ग्राम-नगरों को पावन करते हुए दी पश्चात् आपका अपनी जन्मभूमि झीलों की नगरी, पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र उदयपुर में चातु
सार्थ पदार्पण हुआ। संवत् २०२४ के वर्षावास के पश्चात् चौदह वर्ष से आपका उदयपृर पदार्पण हुआ था। राम के चौदह वर्ष वनवास के पश्चात् अयोध्या आगमन पर ज्यों अयोध्यावासियों को अपार प्रसन्नता हुई इसी प्रकार आपके पदार्पण से उदयपुरवासियों को भी बहुत प्रसन्नता हुई। आपके आगमन पर उदयपुर श्रीसंघ ने आपका और आपकी शिष्या-प्रशिष्याओं का भव्य स्वागत किया द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
600 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 600
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