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इस वर्षावास में आगम और उनके व्याख्या साहित्य तथा जन दार्शनिक ग्रन्थों का गहराई से अध्ययन करने का अवसर मिला। चातुर्मास के अन्त में कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी वि. सं. २०३० के दिन आपकी ममेरी बहन वैराग्यवती सुश्री स्नेहलता सियाल एवं वैरागी भाई श्री चतरलाल मोदी की जैन भागवती दीक्षा हर्षोल्लासमय वातावरण में भव्य समारोह के साथ सम्पन्न हुई । विभिन्न वस्तुओं की बोलियों पर समाज के लिए लगभग पचास हजार रुपये की धनराशि एकत्र हुई। कुमारी स्नेहलता सियाल आपकी द्वितीय शिष्या बनी और दीक्षोपरांत नाम रखा साध्वी दिव्यप्रभा तथा श्री चतरलाल मोदी का श्री दिनेश मुनि नाम रखकर पूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. के शिष्य घोषित किया गया।
शिष्याओं के अध्ययन की व्यवस्था-महासती श्री कुसुमवती जी म० सा० का लक्ष्य प्रारम्भ से ही उच्चतम ज्ञान प्राप्ति का रहा। इस लक्ष्य का समुचित ध्यान तो आपने अपने लिए रखा ही, साथ ही आपने अपनी शिष्याओं को भी इसके लिए सदैव प्रेरित किया। आपकी यह मान्यता रही है कि पढ़ीलिखी साध्वियां जिनशासन की विशेष रूप से प्रभावना कर सकती हैं। आपने अपनी शिष्याओं के लिए संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी, साहित्य, व्याकरण, जैनागम एवं दर्शन के समुचित अध्ययन की मार व्यवस्था करवाई। इसके साथ ही माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर | तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की परीक्षाएँ भी दिलवायीं । साध्वियों के अध्ययन और परीक्षाओं के कारण आप लम्बे समय तक अजमेर तथा अजमेर के समीपवर्ती ग्राम-नगरों में ही विचरण करती रहीं। यह आपके ही सुप्रयासों का सुफल है कि आपकी सभी शिष्याएं तथा प्रशिष्याएँ सुशिक्षित कर तथा उच्च उपाधियों से विभूषित विदुषी हैं। आज भी ज्ञान के प्रति इनकी लगन एवं निष्ठा दर्शनीय
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चारित्र का प्रभाव-अपनी शिष्याओं के अध्ययन के निमित्त जिस समय आप अजमेर में विराज रही थीं, उस समय दिल्ली निवासिनी सरोज कुमारी लोढ़ा अपने किसी निजी कार्य से अजमेर एक आईं । सरोज कुमारी लोढ़ा अजमेर में आपके सम्पर्क में आई और आपके उच्च आचार-विचार-व्यवहार को देखकर अत्यन्त प्रभावित हुई। अन्तर्मन में वैराग्य भावना तो पूर्व से ही थी। योग्य गुरुणी जी को पाकर सरोजकुमारी ने आपके सान्निध्य में ही रहने का निश्चय किया। कुछ समयोपरांत वैराग्य भावना परिपक्व होने पर फाल्गुन कृष्णा पंचमी, वि० सं० २०३२ के दिन सरोजकुमारी लोढ़ा ने आपके सान्निध्य में ब्यावर शहर में आर्हती दीक्षा ग्रहण की और दीक्षोपरांत साध्वी श्री दर्शनप्रभाजी म. सा. के नाम से अभिहित हुई।
माताजी महाराज की अस्वस्थता-निर्धारित समय पर साध्वी श्री दर्शनप्रभा जी म० सा० की बड़ी दीक्षा भी सम्पन्न हुई और फिर आपने अपने माताजी महाराज तथा शिष्याओं के साथ ब्यावर से अजमेर की ओर विहार कर दिया । ग्राम खरवा में ठहरे हुए थे कि वहाँ अचानक माताजी म. श्री कैलाश
कुंवर जी म. सा. अस्वस्थ हो गई । हृदय रोगी तो पूर्व से ही थीं। साथ ही अन्य और भी कई व्याधियों ₹ ने अचानक घेर लिया। डॉक्टर को बुलवाया गया । उपचार प्रारम्भ हुआ किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ।
महासती श्री कुसुमवती जी महाराज ने बहुत सेवा की। श्री संघ खरवा ने अपनी सामर्थ्य से भी अधिक जितनी भी हो सकती थी, सेवा को। यहाँ एक दिन ठहरने की भावना थी किन्तु एक माह
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द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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