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आश्चर्यजनक संचार हुआ और विक्रम संवत् २०२५ फाल्गुन शुक्ला पंचमी को नाथद्वारा में भव्य समा- मन रोह के साथ विशाल मानवमेदिनी के मध्य आपने हीराकुमारी को जैन भागवती दीक्षा प्रदान कर उनका नया साध्वी नाम महासती श्री चारित्रप्रभा जी म. रखा। दीक्षा के बत्तीस वर्ष बाद वे आपकी प्रथम शिष्या बनी।
अजमेर का यशस्वी चातुर्मास-दीक्षोपरान्त अपनी नवदीक्षिता साध्वी तथा माताजी महा० आदि सतियों के साथ विहार करते हुए महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा० ब्यावर पधारे । ब्यावर में श्री संघ अजमेर आपकी सेवा में वर्षावास की विनती लेकर उपस्थित हआ। अन्य स्थानों से भी वर्षावास की विनतियाँ समय-समय पर आ रही थीं। अजमेर श्री संघ की अत्यधिक आग्रह भरी विनती को देखते हुए आपने वि० सं० २०२६ के वर्षावास की स्वीकृति अजमेर श्री संघ को प्रदान कर दी।
__ माताजी महाराज श्री कैलाश वरजी म. सा०, महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा. एवं महासती श्री चारित्रप्रभा जी म० सा० वर्षावास हेतु अजमेर पधारे। श्री संघ अजमेर द्वारा समारोह पूर्वक नगर प्रवेश करवाया गया और भव्य स्वागत सत्कार भी हुआ।
माताजी महाराज का स्वास्थ्य इस समय ठीक नहीं था, सती श्री चारित्रप्रभा जी म. सा० नवदीक्षिता थीं। ऐसे में महासती श्री कुसमवती जी म० सा० अकेले पड़ गये । चातुर्मास काल में वैसे । भी धार्मिक कार्यक्रम तथा तपाराधनाएँ आदि अधिक होती हैं। साथ ही प्रतिदिन प्रवचन भी फरमाना ।
दर्शनार्थियों की जिज्ञासा भी शान्त करना आदि और भी अनेक कार्य होते हैं। सारी परिस्थिति को देखते हुए अजमेर श्री संघ के लोगों के मानस में विचार उठ रहे थे कि अकेले महासती जी सब काम 6 कैसे संभालेंगे? यहाँ का श्री संघ भी बड़ा है। कैसे क्या होगा ? किन्तु ज्यों ही वर्षावास का प्रारम्भ He
हुआ । मेघ की धाराओं के साथ-साथ आपके प्रवचन की धारा भी कुछ इस प्रकार प्रवाहित हुई कि वहाँ 21|| का समाज देखता ही रह गया। सभी कार्य व्यवस्थित होते रहे । कहीं कुछ भी कमी नहीं रही। सभी के (B८ वाह-वाह करने लगे। रिकार्ड तोड़ तपस्याएँ हईं। एक साथ सात सौ सामूहिक तेले तथा एक साथ दो टूक
हजार सामूहिक दयाव्रत हुए। वर्षों में एक साथ दो-दो मासखमण का होना इस चातुर्मास की विशेष उपलब्धि थी। मासखमण तप श्रीमती नोरतबाई धर्मपत्नी श्री उदयलाल जी कोठारी एवं श्रीमान् ॥ श्रीलाल जी कावड़िया की धर्मपत्नी ने किया था । हर तरह से वर्षावास ऐतिहासिक एवं यशस्वी रहा।
चातुर्मास की समाप्ति के दिन अजमेर के प्रसिद्ध श्रावक कवि हृदय श्री जीतमल जी चोपड़ा KE ने भाव भरी कविता द्वारा विदाई देते हुए महासती जी से श्री संघ की ओर से आग्रह भरी विनती की । कि आप कहीं भी पधारें परन्तु वैरागिन स्नेहलता कुमारी की दीक्षा यहाँ के लिए फरमाने की कृपा र करें।
महासती श्री कुसमवतीजी म. सा. ने समायोचित उत्तर देते हए फरमाया-"अभी तो वैरागिन CH को आज्ञा भी प्राप्त नहीं हुई है, फिर अभी किस प्रकार आपको आश्वस्त किया जाये । हाँ आपकी विनती का हमारी झोली में है।"
गुरुदेव के सान्निध्य में पुनः अजमेर-वि० सं० २०३० का गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. का चातुर्मास अजमेर हुआ। अजमेर श्री संघ के अत्यधिक आग्रह भरी विनती के कारण महासती श्री ॥ कुसुमवती जी म० सा० का चातुर्मास भी गुरुदेव श्री की सेवा में हुआ । छत्तीस वर्षों में यह प्रथम अवI सर था कि गुरुदेव श्री के सान्निध्य में चातुर्मास किया। १५२
द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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