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का अच्छा ज्ञान था । वि. सं. २०२३ आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी को गोगुन्दा में आपका संथारे के साथ स्वर्गवास हुआ ।
इस परम्परा में महासती शीलकुंवरजी म. अभी विद्यमान हैं । महासती मोहनकुंवरजी, महासती सायरकुंवरजी, विदुषी महासती चन्दनबालाजी, महासती चेलनाजी, महासती साधनाकु वरजी, महासती देवेन्द्राजी, महासती मंगलज्योति, महासती धर्मज्योति आदि अनेक आपकी शिष्याएँ हैं ।
महासती नवलाजी की चतुर्थ शिष्या जसाजी हुईं। इसी परम्परा में महासती लाभकुंवरजी हुईं। इनका जन्म उदयपुर राज्य के कम्बोल गाँव में हुआ था । लघुवय में ही दीक्षा ग्रहण कर ली थी । आप साहसी और निर्भीक प्रकृति की थीं। आपके जीवन में अनेक महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुईं। आपकी अनेक शिष्याएं हुईं। उनमें एक शिष्या महासती छोटे आनन्दकु वरजी थी। आपका जन्म उदयपुर राज्य के कमल गाँव में हुआ था । आप त्यागी भावना वाली थी । प्रवचन प्रभावशाली होते थे । आपकी भी अनेक शिष्याएँ हुईं। जिनमें महासती मोहनकुंवरजी म. और लहरकु वरजी म. का विशेष स्थान है ।
महासती मोहनकुंवरजी - आपका जन्म में ' हुआ था । आपका जन्म नाम मोहनबाई था। एक बार पति-पत्नी तीर्थ यात्रा पर गये थे । हो गयी ।
उदयपुर राज्य के भुताला ग्राम के ब्राह्मण परिवार नौ वर्ष की अल्पायु में आपका विवाह हो गया था । भड़ौच में स्नान करते समय पति की बहकर मृत्यु
महासती आनन्दकु वरजी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भूताला पधारीं । उनके उपदेश से मोहनबाई की वैराग्य भावना जाग्रत हुई । दीक्षा मार्ग में बाधाएँ भी आयीं, किन्तु अन्ततः सोलह वर्ष की आयु में आती दीक्षा ग्रहण की।
आपको अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था । बत्तीस वर्ष की आयु में स्वस्थ होते हुए आपने संथारा ग्रहण करना चाहा किन्तु सद्गुरुवर्या आनन्दकुंवरजी व आचार्य श्री लालजी महाराज ने संथारा करवाने से मना कर दिया । इस सम्बन्ध में महाराणा फतहसिंह ने भी पुछवाया था कि असमय संथारा क्यों किया जा रहा है । आप अपने संकल्प से पीछे नहीं हटीं । अन्त में संथारा ग्रहण किया और गौतम प्रतिपदा के दिन निश्चित समय पर उनका देहावसान हुआ ।
महासती लहरकुंवरजी - आपका जन्म उदयपुर राज्य के सलोदा में हुआ था और यहीं आपका पाणिग्रहण भी हुआ । लघुवय में पति का देहान्त हो जाने के कारण आपने महासती आनन्दकुंवरजी म. के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। आपको आगम साहित्य का अच्छा ज्ञान था । आपने शास्त्रार्थ कर विजय पताका भी फहराई । आपकी वाणी में मिठास और व्यवहार सरल था । सं. २००७ के यशवंतगढ़ चातुर्मास में आपका स्वर्गवास हुआ ।
आपकी दो शिष्याएं हुईं - महासती सज्जनकुंवर जी और महासती कंचनकुंवर जी ।
महासती सज्जनकुंवर जी का जन्म तिरपाल ग्राम के वंबोरी परिवार में भेरूलाल जी की धर्मपत्नी रंगुबाई की कुक्षि से हुआ था । तेरह वर्ष की आयु में कमोल निवासी ताराचन्द्र जी जोशी के साथ आपका पाणिग्रहण हुआ । आपका जन्म जमनाबाई था। पति का देहान्त होने के उपरान्त महासती आनन्दकुंवर जी के पास सं० १९७६ में दीक्षा ग्रहण की। सं० २०३० आसोज पूर्णिमा के दिन यशवन्तगढ़ में आपका स्वर्गवास हुआ । बालब्रह्मचारिणी विदुषी महासती कौशल्या जी आपकी शिया हैं ।
महासती कौशल्या जी की सात शिष्याएं हैं- महासती विनयवती जी महासती हेमवती जी, द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
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साध्वीरत्न ग्रन्थ
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