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देहान्त हो गया तो आपने वि. सं. १९५६ फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी के दिन वास ग्राम में महासती फूलकुवरजी के पास दीक्षा ग्रहण करली। विनय, वैयावृत्य और सरलता आपके जीवन की विशेषताएँ थीं। आपको अनेक शास्त्र और ३०० थोकड़े कण्ठस्थ थे । महासती आनन्दकुवरजो, महासती सौभाग्यकुवरजी, महासती शम्भु कवरजी, बा. व. शीलकुवरजी, महासती मोहन कवरजी, महासती कंचन कंवरजी, महासती सुमनवतीजी, महासती दयाकुवरजी आदि आपकी शिष्याएँ थीं। आपका विहार क्षेत्र राजस्थान 18 और मध्य प्रदेश रहा । वि. सं. २०१३ कार्तिक शुक्ला एकादशी को चौबीस घण्टे के संथारे के साथ गोगुन्दा में आपका स्वर्गवास हुआ।
- महासती लाभकुवरजी-आपका जन्म उदयपुर राज्यान्तर्गत ग्राम ढोल निवासी मोतीलालजी ॥2 ढालावत की धर्मपत्नी तीजबाई की कक्षि से वि. सं. १९३३ में हआ था। आपका विवाह सायरा के कावेडिया परिवार में हआ था। लघु वय में ही आपके पति का देहान्त हो जाने से महासजी फूलकुंवरजी के पास वि. सं. १६५६ में सादड़ी मारवाड़ में दीक्षा ग्रहण की । आपका कण्ठ मधुर और व्याख्यान कला 0 सुन्दर थी । महासती लहर कुवरजी और महासती दाख कुवरजी-दोनों आपकी शिष्याएं हुईं। आपका स्वर्गवास वि. सं. २००३ के श्रावण में यशवंतगढ़ में हुआ।
महासती लहरकुवर-नान्देशमा निवासी सूरजमलजी सिंघवी की धर्मपत्नी फूलकुवर की कुक्षि से आपका जन्म हुआ। आपका विवाह ढोल निवासी गेगरायजी ढालावत के साथ हुआ था । पति के देहान्त के पश्चात् पुत्री का भी स्वर्गवास हो गया। सात वर्षीय पुत्री अपनी सास को सौंपकर वि. सं. १६८१ ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी के दिन नान्देशमा में दीक्षा ग्रहण कर ली। आप मिलनसार थीं। महासती
खमानक वरजी आपकी शिष्या हैं। आपका स्वर्गवास वि. सं. २०२६ में माघ कृष्णा अष्टमी को १२ घण्टे ! CI के संथारे के साथ सायरा में हुआ।
महासती प्रेमकुवर-आपका जन्म गोगुन्दा में और विवाह उदयपुर में हुआ था। पति के देहावसान के पश्चात् महासती फूलकवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की । आप विनीत, सरल एवं क्षमाशील थीं। वि. सं. १६६४ में उदयपुर में आपका स्वर्गवास हुआ। आपकी एक शिष्या महासती पानकुवरजी र हुई थीं जिनका स्वर्गवास गोगुन्दा में वि. सं. २०२४ के पौष माह में हुआ।
महासती मोहनकुंवरजी-आपका जन्म उदयपुर राज्य के वाटी ग्राम में हुआ था। आपका विवाह मोलेरा ग्राम में हुआ था। महासती फूलकुवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की । आपको थोकड़ों का 8 अच्छा अभ्यास था।
- महासतो सौभाग्यकुवरजी-आपका जन्म बड़ी सादड़ी के नागोरी परिवार में हुआ था। बड़ी सादड़ी के ही प्रतापमलजी मेहता के साथ आपका विवाह हुआ था । आपके एक पुत्र भी हुआ। महासती फूलकुंवरजी के उपदेश से प्रभावित होकर उनके ही पास दीक्षा ग्रहण की। आपकी प्रकृति भद्र थी। वि. सं. २०२७ के आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी के दिन तीन घण्टे के संथारे के साथ गोगुन्दा में आपका स्वर्गवास हुआ।
महासती शम्भुकुवरजी--आपका जन्म बागपुरा निवासी गेगराजजी धर्मावत की धर्मपत्नी नाथीबाई की कुक्षि से वि. सं. १६५८ में हुआ था 1 खाखड़ निवासी अनोपचन्द बनोरिया के सुपुत्र धनराज जी के साथ आपका पाणिग्रहण हुआ। आपके दो पुत्रियां हुईं। पति की मृत्यु के पश्चात् अपनी लघुपुत्री के साथ वि. सं. १९८२ फाल्गुन शुक्ला द्वितीया को खाखड़ ग्राम में महासती धूलकुवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की। पुत्री अचरजबाई का साध्वी नाम सती शीलकुवर रखा गया। आपको थोकड़े और साहित्य ११४
द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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