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कालिदास ने अपने लघु मानस में असीम जग को आमंत्रित किया है कि हम सब उनकी अनुभूत विरह वेदना से गुजर कर अपनी सौन्दर्य चेतना को, अपनी प्रेम-चेतना को पवित्र करें, उन्हें तप के द्वारा शुद्ध करें और वास्तविक प्रेमी होने की साधना में प्रवृत्त हों।
यह तो सहज प्रेम का अनजाना, प्रयास-निरपेक्ष व्यवहार है, जब-तब अन्य कार्यों के बीच भी प्रिय को स्वाभाविक रूप से देख लेना एवं उसके माध्यम से उस तक अपना प्रेम पहुंचा देना! इसकी मधुरता को प्रेमी हृदय भलीभांति जानते हैं। इसीलिए रति ने अपने प्रिय के इस व्यवहार को याद रखा है। उस प्राणशोषी विरह में भी अपने प्रति कामदेव के सच्चे प्रेम को व्यक्त करने के लिए वह इस मधुर प्रक्रिया का उल्लेख करती है।
अपने प्रियतम के सखा वसन्त का स्मरण आते ही रति को इस कठिन समय में उसकी अनुपस्थिति खलती है और वह व्याकुल होकर कह उठती है, कहीं वसन्त भी तो महादेव की क्रोधाग्नि से भस्म नहीं हो गया। यह सुनते ही वसन्त उसे आश्वासन देने के लिए वहां उपस्थित होता है। उसे देखते ही रति का शोक और भड़क उठता है। वह छाती पीट-पीटकर, फूट-फूटकर, फफक-फफक कर रोने लगती है। कालिदास की सटीक टिप्पणी है, दुःख में अपने स्वजन को देखते ही दुःख उसी प्रकार वेग से निकलने लगता है मानो देर से रुकी हुई जलराशि को बाहर निकलने के लिए खुला द्वार मिल गया होतमवेक्ष्य सरोद सा भृशं स्तनसम्बाधमुरो जघान च। स्वजनस्य हि दुःखमग्रतो विवृतद्वारमिवोपजायते॥29
इस मनोवैज्ञानिक उक्ति की सत्यता स्वतः प्रमाणित है। आहत हृदय जब अपने किसी सच्चे स्वजन का सान्निध्य पाता है तो अपनी पीड़ा उसके साथ बांट लेना चाहता है। ___ क्या कालिदास ने भी अपनी विरह वेदना अपने श्रोताओं-पाठकों के साथ बांट लेनी चाही थी? कौन जाने! पर यह तो निर्विवाद है ही कि कालिदास ने विरह वेदना के मार्मिक अनुभवों की जो कलादीप्त, समर्थ व्यंजना की है, वह सम्पूर्ण मानव जाति की अमूल्यनिधि है। मिलनजन्य सुख कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि दूसरे को ईर्ष्यान्वित करे किन्तु विरहजन्य दुःख? वह यदि सच्चा है और उसे यदि सही ढंग से व्यक्त किया गया है तो कभी ऐसा नहीं होता कि दूसरे के हृदय को उर्वर न कर दे। महादेवी वर्मा ने ठीक ही लिखा हैदुख के पद छू बहते झर-झर, कण-कण से आंसू के निर्झर, हो उठता जीवन मृदु, उर्वर, लघु मानस में वह असीम जग को आमंत्रित कर लाता।
सन्दर्भ - निर्देश 1 नागार्जुन : चुनी हुई रचनाएं खंड-2 पृ. 25 2 रघुवंशम् 8/52 3 वहीं 1/8 4 मेघदूतम् पूर्वमेघ: 27 5 कुमारसंभवम् 5/2 6 वही 5/53 7 महादेवी साहित्य खंड-3 पृ. 464 8 कुमारसंभवम् 5/86 १रघुवंशम् 8/56 10 आधुनिक कवि (2) सुमित्रानन्द पन्त, कवि की हस्तलिपि 11 रघुवंशम् 8/60 12 मेघदूतम् उत्तर मेघ: 55 13 कुमारसंभवम् 5/1 14 कालिदास की लालित्य योजना पृ. 69 15 मेघदूतम् पूर्व मेघ: 31 16 संचयिता-मानसी पृ. 285 17 मेघदूतम् उत्तर मेघ: 22 18 वही 46 19 रघुवंशम् 8/59 20 विक्रमोर्वशीयम् 4/52 21 अभिज्ञानशाकुन्तलम् 6/9 22 वही 6/17 23 मेघदूतम् पूर्व मेघ: 5 24 रघुवंशम् 8/66-67 25 कुमारसंभवम् 5/57-58 26 वही4/9 27 वही4/23 28 कवितावली 2/21 29 कुमारसंभवम् 4/26 30 आधुनिक कवि (1) महादेवी वर्मा गीत 17
हीरक जयन्ती स्मारिका
विद्वत् खण्ड / १५
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