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है अखिल भारतीय संपर्क भाषा होने के कारण इसने हिन्दीतर भारतीय भाषाओं के शब्दों, रूपों एवं शैली तत्वों को भी अपने में पचा लिया है। हिन्दी भाषा क्षेत्र के प्रत्येक उप भाषा एवं बोली क्षेत्र में मानक हिन्दी पर वहां की स्थानीय भाषिक विशेषताओं का प्रभाव पड़ता है तथा भारत के हिन्दीतर भाषी क्षेत्रों में मानक हिन्दी वहां की भाषिक विशेषताओं से रंजित हो जाती है। हिन्दी भाषा के मानक हिन्दी भाषा रूप को हिन्दी अभिधान से पुकारने का कारण केवल व्यावहारिक है। इस तथ्य से परिचित न होने के कारण ही 'उर्दू हिन्दी की साहित्यिक शैली है'- जैसे वाक्य को सुनकर या पढ़कर उर्दू के साहित्यकारों के मन में इस प्रकार का भाव-बोध जागृत होता है कि उर्दू को आधुनिक साहित्यिक हिन्दी की एक शैली मात्र कहा जा रहा है। वस्तुतः उर्दू हिन्दी की उसी तरह से एक साहित्यिक शैली है जिस प्रकार से आधुनिक साहित्यिक हिन्दी उसकी एक दूसरी शैली है।
खड़ी बोली के आधार पर जिस मानक हिन्दी का विकास हुआ है उसका मूल्य भाषिक दृष्टि से बहुत अधिक है। यह तो स्पष्ट है ि खड़ी बोली, मानक हिन्दी एवं साहित्यिक हिन्दी इन तीनों में अन्तर है।
खड़ी बोली हिन्दी भाषा का क्षेत्रीय रूप है, साहित्यिक हिन्दी आधुनिक हिन्दी साहित्य में प्रयुक्त होने वाली साहित्यिक भाषा है तथा हिन्दी भाषा के प्रत्येक क्षेत्र में हिन्दी की उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति औपचारिक अवसरों पर तथा भिन्न उप भाषा अथवा बोली क्षेत्र के व्यक्तियों से जिस भाषिक रूप के माध्यम से व्यवहार करते हैं वह मानक हिन्दी अथवा मानक हिन्दी का व्यावहारिक रूप है। हिन्दी क्षेत्र की विभिन्न सुदूरवर्ती उपभाषाओं एवं बोलियों में पारस्परिक बोधगम्यता का तथा उनकी भाषिक संरचनात्मक व्यवस्थाओं में समानता का प्रतिशत भले
कम हो फिर भी मानक हिन्दी भाषा अथवा उसके व्यावहारिक उप-मानक रूप के अत्यधिक उच्च प्रकार्यात्मक मूल्य के कारण सम्पूर्ण क्षेत्र में संप्रेषणीयता सम्भव है। सम्पूर्ण हिन्दी भाषा क्षेत्र में पारस्परिक भावात्मक एवं सामाजिक एकता तथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संश्लिष्ट परम्परा ने भी सम्पूर्ण क्षेत्र को एक भाषिक इकाई के रूप में विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। दूसरे शब्दों में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं सामाजिक कारणों से सम्पूर्ण हिन्दी भाषा क्षेत्र में मानक हिन्दी के व्यावहारिक रूप का प्रसार अधिकाधिक सम्भव हो सका है। कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण हिन्दी भाषा क्षेत्र में इस व्यावहारिक हिन्दी को बोलकर अपनी यात्रा पूरी कर सकता है, हिन्दी क्षेत्र के किसी भी भूभाग के बाजार में जाकर सामान खरीद सकता है, किसी भी रेलवे स्टेशन पर उतरकर कुली तथा रिक्शेवाले से बातें कर सकता है, किसी भी होटल में जाकर बातचीत कर सकता है, किसी भी सरकारी अथवा अर्धसरकारी कार्यालय में जाकर सूचना प्राप्त कर सकता है। व्यावहारिक हिन्दी का पूरे भारत राष्ट्र में प्रचार, प्रसार एवं विकास होने के कारण भाषा व्यवहार की उपर्युक्त स्थितियों में से बहुत सी स्थितियां हिन्दीतर भाषी राज्यों में भी उपलब्ध हैं। इस कारण मानक हिन्दी का यह व्यावहारिक रूप सम्पूर्ण भारत की (तथा पाकिस्तान की भी) सम्पर्क भाषा के रूप में व्यवहृत है। हिन्दी भाषा क्षेत्र की तो यह स्थिति है कि इस क्षेत्र
हीरक जयन्ती स्मारिका
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के किसी भी गांव में जाकर कोई व्यक्ति व्यावहारिक हिन्दी बोलकर किसी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त व्यक्ति से बातें कर सकता है तथा उस गांव के किसी भी ऐसे व्यक्ति से जिसका अपने जनपद से इतर हिन्दी के अन्य भाषी क्षेत्र से सामाजिक सम्पर्क बना रहता है, वार्तालाप कर सकता है।
इस प्रकार हिन्दी की दो भिन्न उप भाषाओं अथवा बोलियों के व्यक्ति जब अपनी-अपनी उप भाषाओं अथवा बोलियों के माध्यम से परस्पर संभाषण नहीं कर पाते तो वे मानक हिन्दी अथवा व्यावहारिक हिन्दी के द्वारा परस्पर बातचीत करते हैं। हिन्दी के दो सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले मैथिली एवं मारवाड़ी बोलने वाले व्यक्ति अपने क्षेत्रीय भाषिक रूपों के माध्यम से परस्पर विचारों का आदान-प्रदान भले ही न कर पाएं फिर भी वे अपनी क्षेत्रीय उप भाषाओं की परत पर ऊर्ध्व प्रस्थापित मानक - हिन्दी अथवा व्यावहारिक हिन्दी के द्वारा परस्पर बातचीत कर लेते हैं। मानक हिन्दी अथवा व्यावहारिक हिन्दी के अत्यधिक प्रकार्यात्मक मूल्य के कारण हिन्दी भाषा का जन समुदाय हिन्दी भाषा के विविध रूपों के मध्य संभाषण की स्थिति के कारण एक भाषिक इकाई का निर्माण करता है।
हिन्दी भाषा के विविध भाषा रूपों के मध्य मानक हिन्दी अथवा व्यावहारिक हिन्दी के कारण सम्भाषण प्रक्रिया से भाषिक एकता की चेतना का निर्माण हुआ है। सामाजिक एवं सांस्कृतिक समन्वय के प्रतिमान के रूप में यह मानक अथवा व्यावहारिक हिन्दी सम्पूर्ण हिन्दी क्षेत्र के सामाजिक जीवन में परस्पर आश्रित सह सम्बन्धों की स्थापना करती है सम्पूर्ण हिन्दी भाषी क्षेत्र में साहित्यिक धरातल पर भी साहित्यिक हिन्दी की अविरल परम्परा रही है। हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों ने मैथिली, अवधी, ब्रज, राजस्थानी आदि सभी उप भाषा रूपों में रचित साहित्य को हिन्दी साहित्य के इतिहास की सीमा रेखा में आबद्ध किया है और हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के आरम्भ से हिन्दी के प्रत्येक उप भाषा क्षेत्र के साहित्यकार आधुनिक साहित्यिक हिन्दी में साहित्य रचना कर रहे हैं।
इस प्रकार हिन्दी भाषा क्षेत्र में व्यवहृत होने वाले क्षेत्रगत, वर्गगत, शैलीगत, प्रयुक्तिपरक भाषिक रूपों तथा मानक हिन्दी, व्यावहारिक हिन्दी, आधुनिक साहित्यिक हिन्दी तथा उर्दू साहित्य सभी की समष्टिगत अमूर्तता का नाम 'हिन्दी भाषा' है। 'हिन्दी' की व्यापक अर्थवत्ता है और इस कारण उर्दू, फारसी लिपि में लिखी जाने वाली इसकी उसी प्रकार एक साहित्यिक शैली है जिस प्रकार 'आधुनिक साहित्यिक हिन्दी ' देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली इसकी दूसरी साहित्यिक शैली है और इसी कारण भोजपुरी, मैथिली, मगही, मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती, निमाड़ी आदि समस्त भाषिक रूप हिन्दी भाषा के अंग हैं, हिन्दी भाषा के उप भाषिक रूप हैं।
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निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा (उ0 प्र0)
विद्वत् खण्ड / ५
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