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जाता है इसीलिए यहां हिन्दी से जीविका कमाने वाले या हिन्दी भक्त के नाम से वोट मांगने वाले और बदले में हिन्दी को मातृभाषा घोषित करने वाले ऐसे देश-भक्तों की संख्या नित्य बढ़ती जाती है यद्यपि उनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं है- पंजाबी, राजस्थानी, मैथिली, भोजपुरी, अवधी, ब्रज, छत्तीसगढ़ी, हरियाणवी, कुमाउनी, डोगरी, गढ़वाली आदि चाहे कोई और हो पर हिन्दी (खड़ी बोली) नहीं है"।
1965 के बाद साहित्य अकादमी ने भी हिन्दी क्षेत्र की बहुत सी उपभाषाओं को हिन्दी भाषा से अलग स्वतंत्र दर्जा दिलाने की दिशा में विशेष प्रयत्न किया।
हिन्दी को उसके अपने ही घर में तोड़ने की विखंडनवादी नीति के विरोध में अनेक चिंतकों का ध्यान आकर्षित हुआ। 1971 में भारतीय हिन्दी परिषद् के 25वें वार्षिक अधिवेशन में उपस्थित विश्वविद्यालयों के 300 से भी अधिक हिन्दी प्राध्यापकों की सभा ने साहित्य अकादमी की भाषा नीति की तीव्र आलोचना की तथा एक प्रस्ताव पारित करके साहित्य अकादमी के सभापति से अनुरोध किया कि वे हिन्दी क्षेत्र की संश्लिष्ट भाषा, साहित्य और संस्कृति की परम्परा को क्षेत्रों में खंडित करने का उपक्रम अविलम्ब समाप्त करावें। हिन्दी के व्यापक और संश्लिष्ट रूप का निर्माण उसके साहित्य की एक हजार वर्ष की लम्बी परम्परा ने किया है और किसी अकादमी को यह अधिकार नहीं है कि वह इस प्रकृति को उल्टी दिशा में मोड़े। ___ वस्तुत: हिन्दी भाषा का क्षेत्र बहुत बड़ा है तथा हिन्दी क्षेत्र में ऐसी बहुत सी उप भाषाएं हैं, जिनमें पारस्परिक बोधगम्यता का प्रतिशत बहुत कम है किन्तु ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से संपूर्ण हिन्दी भाषा क्षेत्र एक भाषिक इकाई है तथा इस हिन्दी भाषा क्षेत्र के बहुमत भाषा-भाषी अपने-अपने भाषा रूप को हिन्दी भाषा के रूप में मानते एवं स्वीकार करते आए हैं। इस हिन्दी भाषा क्षेत्र में मानक हिन्दी के बोलचाल वाले भाषिक रूप का प्रकार्यात्मक मूल्य बहुत अधिक है। सम्पूर्ण हिन्दी भाषा क्षेत्र के दो उप भाषी अथवा बोली भाषी जब अपनी उप भाषाओं अथवा बोली रूपों के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान नहीं कर पाते तो वे भाषा के इसी रूप के द्वारा संप्रेषण कार्य करते हैं। जिन भाषाओं का क्षेत्र हिन्दी भाषा क्षेत्र के समान विशाल होता है तथा जिस भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा के प्रयोक्ताओं के । समान बहुत अधिक होती है उन भाषाओं में इसी प्रकार की स्थिति मिलती है। हिन्दी, चीनी एवं रूसी भाषाओं के भाषा क्षेत्रों की भाषिक स्थिति का अध्ययन भाषा क्षेत्र के क्षेत्रगत भिन्न भाषिक रूपों में परस्पर बोधगम्यता के आधार पर नहीं किया जा सकता। हिन्दी, चीनी एवं रूसी भाषाओं में से किसी भी भाषा के 'भाषा क्षेत्र में प्राप्त सभी क्षेत्रगत भाषा रूपों में पारस्परिक बोधगम्यता की स्थिति नहीं है। इन तीनों भाषाओं में उनकी क्षेत्रगत भाषा रूपों के अतिरिक्त भाषा का एक ऐसा रूप मिलता है जिसके माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्ति परस्पर विचारों का आदान-प्रदान कर पाते हैं। भाषा के क्षेत्रगत भाषा रूपों में पारस्परिक बोधगम्यता की स्थिति होना एक बात है तथा किसी भाषा के सभी भाषा-क्षेत्रों के व्यक्तियों का अपनी भाषा के किसी विशिष्ट रूप के माध्यम से परस्पर बातचीत कर पाना दूसरी बात है। इस दूसरी
स्थिति में 'पारस्परिक बोधगम्यता' नहीं होती, 'एक तरफा बोधगम्यता' होती है। ___इस स्थिति में क्षेत्र विशेष के व्यक्तियों से क्षेत्रीय भाषा रूप में बातें होती हैं किन्तु भाषा के दूसरे भाषा क्षेत्रों अथवा बोली क्षेत्र के व्यक्तियों से अथवा औपचारिक अवसरों पर उस भाषा के मानक रूप का अथवा मानक भाषा के आधार पर विकसित व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया जाता है। भाषा की उप भाषाओं अथवा बोलियों से मानक भाषा के इस प्रकार के सम्बन्ध को फर्ग्युसन ने बोलियों की परत पर मानक भाषा की ऊर्ध्व प्रस्थापना माना है तथा गम्पर्ज ने इस प्रकार की भाषिक स्थिति को 'बाइलेक्टल' के नाम से अभिहित किया है।
प्रश्न उठता है कि हिन्दी भाषा का क्षेत्र क्या है ? इस दृष्टि से हमारे संविधान में जो राज्य हिन्दी भाषी राज्यों के रूप में मान्य हैं उनके
आधार पर हिन्दी भाषा की पहचान की जा सकती है। बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा दिल्लीये समस्त राज्य हिन्दी भाषी राज्य हैं। इन सम्पूर्ण हिन्दी भाषी राज्यों का क्षेत्र ही हिन्दी भाषा का क्षेत्र है। इस क्षेत्र में कहीं-कहीं अन्य भाषाओं की बोलियों के भाषाद्वीप अवश्य हैं तथा इन हिन्दी भाषी राज्यों की सीमाओं से जहां-जहां हिन्दीतर भाषी राज्यों की सीमाएं लगती हैं वहां हिन्दी एवं अहिन्दी भाषाओं के संक्रमण क्षेत्र' भी हैं। तथापि अधिकांश क्षेत्र हिन्दी भाषा का क्षेत्र है तथा इस क्षेत्र में जितने भाषिक रूप बोले जाते हैं वे हिन्दी भाषा के ही अंग हैं।
हिन्दी की दो प्रधान साहित्यिक शैलियां हैंI. खड़ी बोली के आधार पर विकसित संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक रूप
जिसे साहित्यिक हिन्दी भाषा के नाम से जाना जाता है। 2. खड़ी बोली के ही आधार पर विकसित अरबी फारसी निष्ठ साहित्यिक रूप जिसे उर्दू के नाम से पुकारा जाता है।
यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि खड़ी बोली हिन्दी भाषा का एक क्षेत्र विशेष में बोले जाने वाला भाषा रूप है- उसी प्रकार जिस प्रकार ब्रज, अवधी, भोजपुरी आदि भाषा रूप हिन्दी भाषा के क्षेत्रीय रूप हैं। खड़ी बोली हिन्दी भाषा का वह क्षेत्रीय रूप है जो मेरठ, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर आदि जिलों तथा देहरादून आदि के सीमित भागों में व्यवहृत होता है। खड़ी बोली क्षेत्र में रहने वाले सभी वर्गों के व्यक्ति जो कुछ बोलते हैं वह खड़ी बोली है किन्तु हिन्दी की अन्य उप भाषाओं (ब्रज, हरियाणवी, अवधी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मैथिली, मगही, गढ़वाली, कुमाऊँनी, मेवाती, मारवाड़ी, जयपुरी, निवाड़ी आदि) की भांति इस क्षेत्र में भी हिन्दी की उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति परस्पर संभाषण अथवा औपचारिक अवसरों पर मानक भाषा का प्रयोग करते हैं। मानक भाषा का प्रयोग हिन्दी क्षेत्र के अन्य उप भाषा क्षेत्रों में भी होता है। इस मानक हिन्दी का विकास खड़ी बोली के आधार पर हुआ है। मानक हिन्दी की मूलाधार खड़ी बोली है। खड़ी बोली के आधार पर मानक हिन्दी विकसित तो हुई है किन्तु खड़ी बोली ही मानक हिन्दी नहीं है। मानक हिन्दी बनने के बाद इस पर ब्रज एवं हरियाणवी का भी प्रभाव पड़ा है तथा हिन्दी की अन्य उप भाषाओं के शब्द रूपों को भी इसने आत्मसात् किया
हीरक जयन्ती स्मारिका
विद्वत् खण्ड/४
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