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रीतेश डागा, XII-A
हीरक जयन्ती स्मारिका
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नाम मेरा छप जाए
पढ़ने वालों पढ़ो ध्यान से, छोटा सा किस्सा मेरा, एक कहानी लिखने की आफत ने मुझको घेरा।
रात दिन में वही रहा सोचता, कोई कहानी बन जाए, "जैन विद्यालय की पत्रिका" में बस नाम मेरा छप जाए।
तैयार हुआ, लिखने बैठा, चेताया भावों को मैने, कितने ही कागज रंग डाले परन्तु पड़े लेने के देने ।
फिर सोचा यदि कहानी नहीं, कोई कविता छप जाए, नई पुरानी जैसी भी हो, बस नाम मेरा छप जाए।
कठिन परिश्रम करने पर भी उद्गार नहीं अभिव्यक्त हुए, हिन्दी सम्पादक के पास गया जब सभी हौसले पस्त हुए।
हाथ जोड़कर विनती की उनसे, बस एक दया मुझ पे करना, कविता मेरी छपे न छपे, बस नाम मेरा छपवा देना ।
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विद्यार्थी खण्ड / ७
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