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________________ 'सुमन सुधा जी' शिष्यायें ये तीनों हैं अति विनयवती विज्ञ हजारीमल्ल मुनीश्वर मरुधर मन्त्री थे गुण-खान दीक्षा-पाठ पढ़ाया उनने बहुत प्रेम से सह सम्मान [११] सचमुच हुई आपको जिससे सच्ची खुशी सवाई थी विदुषी साध्वी कानकंवर-सी पूज्या गुरुणी पाई थी बहुत मगन हो बड़ी लगन से जैनागम का कर अभ्यास 'जैन सिद्धान्ताचार्य परीक्षा अच्छे अंकों की थी पास [८] ज्ञान-ध्यान-व्याख्यान-कला के सुलझे थे इक साध्वीरत्न खोल-खोल हर बात शास्त्र की समझाने का किया प्रयत्न [९] 'विदुषी सती बसन्तकंवरजी' 'साध्वी कंचनकंवर' अहो! 'अक्षयज्योति सती-सी अच्छी तीनों ही गुरुबहन कहो [१०] 'विदुषी चेतनप्रभा सती' है चन्द्रप्रभा जी सुज्ञ सती जिनने जग तज बड़े हर्ष से पांच महाव्रत धारे थे 'जीतमल आचार्य आपके मामा श्री जी प्यारे थे [१२] 'कानकंवरजी' भुआ आपकी नानी 'भीकमकंवर' तथा चाची 'सुन्दरकंवर' और फिर सती बनी थी जगत तजा [१३] ऐसे निकट स्नेही पहले चुके जगत को जब हैं त्याग अचरज क्या जो बसा आपके मन में ही आकर वैराग _[१४] परम प्रशंसित वंश बहुत है त्याग तपस्या वाला जी इनके जीवन में न क्यों फिर होता ज्ञान-उजाला जी [१५] 'गीदड़बाहा मण्डी' में जो, पंजाबी 'मुनि चन्दन है इनके तप-जप-संयम का वह करता शत अभिनन्दन है * * * * * (७२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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