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कान त्याग संसार
• उप प्रवर्तक श्रमण संघीय सलाहकार श्री सुकनमल जी म.सा. तात विजय की लाडली, अनची कूख उज्जाल। भाद्र कृष्णा अष्टमी, जन्मी कुचेरा बाल ॥१॥
महासती सरदार से, शिक्षा दीक्षा धार।
आर्या बन गयी प्रेम से, कान त्याग संसार ॥२॥ निज गुरुणी की सेवना विनय बेल बन कीध। काम क्रोध पतला किया, जग पावन जस लीध ॥३॥
श्रमणी गुण गहरा भरिया, कहाँ लग करु बखाण।
गुरु हजारी मिल गये, कान कँवर शुभ यान॥४॥ समता रख खमता सदा, सह्या परिषह पूर। श्रमण संघ में महासती, कानकँवर थी सूर॥५॥
___ संयम जीवन मोटको, कान निभायो सार।
ज्ञान ध्यान उर में धरयो, जीनवाणी रो तार॥६॥ प्रथम चेली चम्पा हुई, बसन्त, कन्चन जाण। चेतन चन्द्र सुमन, अक्षय प्रशिष्या पहिचान॥७॥
मरुधरा से चालकर, फरसे कई परदेश।
दक्षिण देह त्याग दी, जमा धरम की रेस॥८॥ काल कुटिल करड़ी करी, लेगया कान उठाय। सती समूह विलखो थयो, कारी लगी कछुनाय॥९॥
तव आत्म आनन्द लहे मिले मनुष्य भव' और
'सुकन' साधना शिव मिले, अष्ट कर्म • तोर ॥१०॥ स्मृति ग्रन्थ श्रद्धाजंली, करे समर्पित तोय। चऊ संघ आनन्द लेह, दिन-दिन उन्नति होय॥११॥
• पाली (राजस्थान)
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