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सामने पुत्री प्रयाण कर दे तो असह्य दुःख होता है। ऐसे दुःख के घनघोर बादलों में पू. श्री कानकुंवरजी म.सा. को आच्छादित कर दिया जब आपकी परम सेवाभावी परम विदुषी शिष्या पू. श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. ने बिना किसी पूर्व सूचना, बिमारी के अचानक एक रात सबके सामने देखते ही देखते प्रस्थान का बिगुल बजा दिया जिसने समस्त दिशाओं में कष्टदायक कालिमा बिखेर दी। चारों ओर जहाँ भी निगाहें जाती सभी के नयनों ने अश्रुधारा बहाकर वेदना का इजहार किया। इस वियोग ने मातृत्व को मर्माह कर दिया।
संयोग से दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त किया तो अंखियों की कोर सजल हो गई बस एक ही टीस, अब सहन शक्ति क्षीण हो गई। श्री चम्पाजी म. चले गये मेरे लिए दुःख का उपहरा दे गये, यह विच्छोह सहना दुष्कर है। मेरा भी समय निकट आ गया। मेरा भी बुलावा आ रहा है और पाँच महिने भी पूरे न हो पाये। एक शोक से अभी ऊभर भी नहीं पाये थे कि पू. श्री कानकुंवरजी म.सा. ने भी अपनी यात्रा पूर्ण कर प्रयाण की भेरी बजा दी। पुनः क्रूर काल के अट्टाहास से सभी कम्पित हो गये। छोटी छोटी शिष्यायें बिलख कर रह गई किन्तु यमराज को रहम नहीं आया।
काल तो कराल ठहरा जो तीर्थंकरों को भी अपने आगोश में ले लेता है। एक न एक दिन सभी की बारी आती है रिटर्न पासपोर्ट लेकर आये हैं। अवधि पूरी होने पर जाना ही पड़ता है। जो जीवन का मूल्यांकन करना जानता है वह महोत्सव मनाता है और जो मूल्यांकन नहीं करता उसे पश्चाताप की अग्नि भस्म कर देती है।
रेलगाड़ी कितनी भी लम्बी हो, इंजिन कितना भी शक्ति शाली हो किन्तु सुरक्षा की दृष्टि से गार्ड के डब्बे की कीमत होती है, उसी प्रकार मनुष्य जन्म भी ८४ लाखयोनि रूपी लम्बी गाड़ी में गार्ड के डिब्बे समान है। जिसने अपनी ताकत को पहचाना उसने जीवन की गाड़ी को हरी झण्डी बता दी, जीवन सार्थक कर लिया। चरम व परमपद को प्राप्त करने का सर्टीफिकेट पा लिया परन्तु जिसने अपना मूल्यांकन नहीं समझा और मोह की मदिरा पी उसे फिर से चौरासी के चक्कर में फंसना पड़ा।
धन्य है वे महापुरुष जिन्होंने राग द्वेष की बेड़ी को काटने का प्रयत्न करने, संयम की तलवार पर पैर रख कर बढ़ने का साहस किया। वे समस्त लोक में पूजनीय बन गये। साध्वी द्वय ने अपनी विदुषी शिष्याओं को संसार सागर में अपनी नाव के स्वयं खिवैय्या बनाने, सफल नाविक बनाने की दृष्टि से हाथों में चप्पू थमाकर स्वयम् प्रस्थान कर दिया।
अंत में दोनों पूज्य साध्वी रत्नों के पावन चरणों में श्रद्धा सुमन समर्पित करते हुए कामना करता हूँ कि उनके पद चिन्हों पर चलने का साहस जागे इसी भावना से चरणों में कोटिश वंदन, शतः शतः अभिवंदन.....!
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