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भगवान बनने का मार्ग प्रशस्त करती है। दृढ़ प्रतिज्ञ को कौन रोक सकता है अंततः पुनः खुशी के नगाड़े बज उठे। कुचेरा नगरी ने पुनः दुल्हन का परिवेष धारण किया।
भगवान महावीर की दुकान के सजग प्रहरी जहाँ विराजमान थे उस ओर जन मानस का सैलाब उमड़ पड़ा। भक्त जनों ने अपरिमित खुशी में झूमकर जय घोषों से आकाश को गुंजायमान कर दिया। पू.श्री. कानकुंवरजी म.सा. की चिर अभिलाषा फली भूत हुई। एक भुआ को भतीजी मिली। एक साध्वी को शिष्या मिली। प्रभु के शासन में एक और श्रृंगार की अभिवृद्धि हुई। नियति ने अपना वादा पूरा किया। सतपथ के राही को सच्चा मार्ग मिला। जन जन को चरण वंदना के लिए नये चरण मिले। पू. महासती श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. के नाम से विख्यात हुई।
संयम के सुमेरु, जन मन की ज्योति, आस्था के आयाम, श्रद्धा के केन्द्र अद्भुत साधक, प्रातः स्मरणीय पू. श्री जयमलजी मा.सा. के धर्म रथ के सारथी, संयमनिष्ठ, मरुघरा मंत्री पू.श्री हजारीमलजी म. सा., शासन सेवी स्वामीजी पू. श्री ब्रजलालजी म. सा., मरुघर की मीठी मिश्री और मधुरस की अनुपम मिठास लिये आगम मनीषी श्रमण संघ के युवाचार्य परम श्रद्धेय पू.श्री मिश्रीमलजी म.सा. 'मधुरकर' के समुदाय की शान सतीरत्नों की माला में सम्मिलित होकर धर्म की प्रभावना के साध्वी द्वय ने अपने आपको समर्पित कर दिया।
बरगद के वृक्ष की छाया किसे नहीं मिलती। जो पथिक आता है वहीं शांति पाता है। ऐसे महान साधकों की छत्र छाया में पूज्य महासती श्री चम्पाकुवंरजी म.सा. को ज्ञानाराधना के भरपूर अवसर प्राप्त हए। जैन आगमों का गहन अध्ययन कर जैन सिद्धान्ताचार्य बने। संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती भाषा पर अधिकार प्राप्त किया।
ज्ञान दर्शन चारित्र की सम्यक साधना में रत रहते हुए भारत की हजारों मील भूमि को अपने पावन चरणों से पवित्र करती हुई, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और अंत में तमिलनाडु के मद्रास को अंतिम यात्रा के रूप में स्थापित किया। आपकी ओजस्वी वाणी से प्रभावित हो सरलमना पू.श्री बसंतकुंवरजी म.सा., परम विदुषी पू. श्री कंचनकुंवरजी म.सा., आगम रसिक पू. श्री चेतन प्रभाजी म.सा., मधुर व्याख्यानी कवि हृदय, भावुक पू. श्री चन्द्रप्रभाजी म.सा., विद्याभिलाषी, कोकिल कंठी पू. श्री सुमन प्रभाजी म.सा., सदा प्रसन्न नव दीक्षिता पू. श्री अक्षय ज्योतिजी म.सा. ने संसार को तिलांजली दे आपका शिष्यत्व अंगीकार कर जीवन को सार्थकता प्रदान की।
. जहाँ लक्ष्मी का निवास हो वहाँ सरस्वती नहीं रहती और जहाँ सरस्वती हो वहाँ लक्ष्मी का निवास सम्भव नहीं। ऐसी कहावत चरितार्थ है। तमिलनाडु का वैभवशाली क्षेत्र मद्रास संत सेवा में सदा गौरवांवित रहा है और यही कारण है कि उपरोक्त कहावत के दोनों पल छत्तीस के अंक से त्रेसठ के अंक के रूप में रहने का अभूतपूर्व निर्णय लेकर पुरानी कहावत को झूठी साबित कर दिखाया। जहाँ धर्म के प्रताप से धन की अटूट वर्षा होती है तो सरस्वती की गंगा भी प्रवाहित होती है। ऐसी पुण्यशाली नगरी को अंतिम पड़ाव ने गरिमा प्रदान की और जैन महिला स्थानक सतत साधना का केन्द्र बन गया।
अध्यात्मयोगिनी पू. श्री कानकुंवरजी म.सा. वृद्धावस्था के साथ-साथ शारीरिक अस्वस्थता से पीड़ित थे। कई बार लगता कि छत्र छाया से वंचित हो जायेंगे। परम विदुषी महा पू.श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. की सतत् सेवा में आयुवृद्धि कर दी। इस आयुवृद्धि ने मर्मान्तक पीड़ा का पुरस्कार प्रदान किया। माता के
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