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________________ काव्यांजलि शोक पंचक (समतारस स्वामिनी) प्रवर्तक श्री रूपचंद म. 'रजत' सटके स्वर्ग सिधारगी, कानकुंवर कल्याणि। पत्यक्ष सती पारसमणि, भल मन रूप भवानि॥१॥ सरल मना पुनि सादगी, महिमावती मधु वानि। सखरो संयम पाल ने, स्वर्गे सटक सिधानि॥२॥ वयोवृद्ध वरदायनि, सायनी संघ गुराणि। कानकँवर कोमलमति, सति रूपमति राणि॥३॥ आगम ज्ञान अव्यग्ग था, दच्छ रूप रस खानि॥४॥ आतम रूप आनन्द ले, मुक्ति मुक्ति पथठानि। परम गति सति को भई, रही याद तव कहानि॥५॥ श्रद्धा सुमन • प्रवर्तक श्री रूपचंद म. 'रजत' दोहा हरि वेधा सुर शारदा, किन्नर जच्छ मुनिन्द। चंपा कानकंवर सती, भेट मेटत फन्द॥१॥ वन वनांत पख्खरवनी, धन कन इन्दरगाज। झन झनाट खगवट सुर, सती प्रगटी धम्मकाज॥२॥ सोम सूर माधव शुकल, दशामि देव गुरुवार। स्वातिम गोमुख समय, सती लियो तन धार॥३॥ बाल प्रोढ़ा वह रही, तन में उठी तरंग। (६६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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