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________________ बड़े महाराज सा. श्री कानकुंवरजी म.सा. के देवलोक होने का समाचार सुनकर हार्दिक दुःख हुआ। उनकी आत्मा की शांति के लिए वीर प्रभु से प्रार्थना करते हुए अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। - हूकमीचन्द, कचेरा (राज.) पू. महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. के देवलोक होने के समाचार सुनकर समाज में शोक व्याप्त हो गया। दिवंगत आत्मा को हमारी ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि। . प्रेमचंद बागमार, कुचेरा पू. महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. के काल धर्म प्राप्त करने का समाचार सुनकर गहरा आघात लगा। महासाती जी म.सा. मद्रास में जितने वर्ष विराजमान रहे, मद्रास श्री संघ ने अच्छी सेवा की और लोक होने पर अनेक शभ कार्य किये तथा घोषणायें की यह अनुकरणीय आदर्श है। इसके लिये साहुकार पेठ के समस्त पदाधिकारी एवं सदस्य धन्यवाद के पात्र हैं। दिवंगत आत्मा को शांति प्राप्त हो, ऐसी वीर प्रभु से प्रार्थना करते हैं। स्थानीय स्थानक भवन में भी एक शोक सभा का आयोजन कर दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। . चम्पालाल सिंघवी, कुचेरा (राज.) साध्वी रत्ना परम विदुषी महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. एवं परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुवंरजी म.सा. के जीवन को परिलक्षित करते हुए समाज उनके महनीय कार्यों के प्रति अपना सम्मान स्मृतिग्रंथ के रूप में व्यक्त कर रहा है, यह बड़े हर्ष का विषय है। इस पवित्र तथा श्रेष्ठ कार्य के लिए मेरी तथा मेरे परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। - डॉ. (श्रीमती) कुसुमलता जैन, इन्दौर (म.प्र.) शासन प्रभाविका, अध्यात्म योगिनी, सरलस्वभावी वयोवृद्धा महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. के देवलोक होने की सूचना से बहुत दुःख हुआ। यहाँ आयोजित शोक सभा में दुःखद समाचार सुनाया गया और चार चार लोगस्स का ध्यान कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कुछ ही दिन पहले पू. महासती श्री चम्पाकुवंरजी म. देवलोक हुए थे। उस दुःखद घटना को भूल भी नहीं पाये थे कि फिर यह वज्रघात हुआ। बालोद में पू. महासतियांजी म. का सं. २०३७ में वर्षावास हुआ था। उस समय महासती श्री कानकवंरजी म.सा. के धार्मिक उपदेश से एक बालिका को वैराग्य उत्पन्न हुआ था। जिन्होंने बाद में दीक्षाव्रत अंगीकार कर लिया और आज महासती श्री चेतनप्रभा जी म. के नाम से परिचित है। दोनों स्वार्गस्थ महासती जी म. के अधूरे कार्यों को पूरा करना हमारा कर्तव्य हो जाता है। . मोमराज खेतमल, श्री श्रीमाल पू. महासती श्री कानकुवंरजी म.सा. के देवलोक होने का समाचार जैसे ही मिला, हृदय को बड़ा आघात लगा। वीर प्रभु से इस दुःख को सहन करने की आप सभी को क्षमता प्रदान करें। मैं अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। . प्रसन्नकुमार चोरडिया, बालाघाट (म.प्र.) (६१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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