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________________ परम पूजनीया, बड़े म.सा. के देवलोक होने का समाचार जानकर गहरा दुःख हुआ है। विधि के विधान के आगे किसी का जोर नहीं है। वीर प्रभु महाराज साहब की आत्मा को शांति प्रदान करे । ■ हुकुमचंद जैन, रायपुर (म. प्र. ) पू. महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. के महाप्रयाण का समाचार जानकर बहुत दुःख हुआ । परमपिता परमात्मा से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें। ■ डॉ. गुलाब सिंह दाड़ा, आई. ए. एस., शासन उपसचिव (गृह), जयपुर (राजस्थान) ***** श्रद्धासुमनः महासतीद्वय के चरणों में ताराचंद लोढ़ा आनंद लगभग ८० वर्ष पूर्व धर्म नगरी कुचेरा के सुराणा परिवार में एक भव्य आत्मा अवतरित हुई जिसमें बाल अवस्था से ही धर्म के बीजांकुर फूट पड़े थे । यौवन की देहली पर चढ़ते ही वैराग्य ने अपना रंग जमाया। संसार के दलदल में कमलवत रहने का अभ्यास करने लगे। अटवी में भटकने की बजाय अटकने की युक्ति अपनाई। अपूर्व साहस का परिचय दिया । दिनचर्या में नई बात आई । संयम की सौरभ से सारा चमन महक उठा। धर्म नगरी कुचेरा का नाम रोशन कर दिया। सुराणा परिवार को गरिमा प्रदान की । जन जन के मन में आनन्द की लहरे लहरा उठी। शूलों की चुभन गुलाब को खिलने से कब रोक पायी। दृढ़ मनोबली को रोकने की सामर्थ्य किसमें ? तत्कालीन मरुघरा मंत्री स्वामीजी परम श्रद्धेय पूज्य श्री हजारीमलजी मा.सा. के सांनिध्य में नवजीवन प्राप्त हुआ। संयम के सुमेरु पर अलख जगाने के संकल्प ने स्वरूप साकार किया और राजस्थान की माटी ने शासन की सेवा में एक अदुभुत रत्न समाज को समर्पित कर दिया। जिसे महासती पू. श्री कानकुंवरजी म.सा. के नाम से जानने लगे। Jain Education International पूज्य महासतीजी ने संयम जीवन में प्रवेश कर ज्ञान साधना में स्वयं को स्थापित कर दिया । स्वाध्याय के सम्बल से जीवन को तराश कर अध्यात्मयोगिनी बन जन-जन को नव प्रकाश से आलोकित कर दिया। सरल और निश्छल मन मानव मात्र को आकर्षित करने लगा। मधुरिम वाणी से धर्म का अमृत पिलाने का अद्भुत प्रयास, आत्म बोध की प्रभावशाली शैली, जीवन का शोधन करने की ज्योति जागृत करती । साधना पथ के राही विनय और विवेक की ज्योति प्रज्वलित कर ले तो साधना में गति आ जाती है । मन के बिखरे मोतियों को माला में पिरोना अत्यन्त कठिन कार्य है किन्तु असंभव नहीं । अमावस की अंधियारी है तो दूज का चांद निकलने वाला है। रात्रि की कालिमा को धोने के लिए पौ फटने ही वाली है । दुःख की काली घटा छाई है तो सुख का सूरज निकलने ही वाला है । भव भ्रमण के अंतिम छोर पर मुक्ति हमारी प्रतीक्षा कर रही है अतः बढ़ो.... और आगे बढ़ो.... किसी कवि ने ठीक ही कहा है .... • (६२) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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