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________________ पूजनीया गुरुणीजी महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. के अचानक देहावसान का समाचार सुनकर अत्यधिक दुःख हुआ। अपने सम्प्रदाय में महासतीजी सबसे ज्येष्ठ थे। उन्होंने अपनी साधना के द्वारा अपना जीवन सफल बनाया। मैं अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। . मोदी निहालचन्द्र, ब्यावर (राज.) दिनांक १९-३-९१ के समाचार पत्र में पू. महासती श्री चम्पाकुंवरजी म. सा. के देवलोक होने का समाचार पढ़कर पूरे परिवार के हृदय को गहरा आघात लगा। महासती जी जैन समाज की एक महान तपस्विनी साध्वीजी थे। अब उनका स्थान रिक्त हो गया है। उन्होंने जैन समाज एवं जैनेतर समाज के अनेक व्यक्तियों को धर्म एवं तपस्या की राह पर चलाया और चलने की प्रेरणा दी। मेरी ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि। - नेमनाथ जैन, मेरठशहर (उ.प्र.) परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. के देवलोक होने के समाचार सुनकर अत्यन्त दुःख हुआ। पूजनीय महासती जी की दिवंगत आत्मा की शांति के लिए वीर प्रभु से प्रार्थना करते हुए हम अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। - मांगीलाल कुचेरा (राज.) महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. के देवलोक होने के समाचारों से अत्यधिक दुःख हुआ। जैन समाज के वरिष्ठ संत-सतियाँ जी एक एक करके हमसे बिछुड़ रहे हैं। विधि के विधान के आगे हम आप कर ही क्या सकते हैं। जिसने जन्म लिया, उसे एक दिन अवश्य ही जाना है। महासतीजी मिलन सार, स्पष्ट वक्ता और सेवा भावी व्यक्तित्व की धनी थी। इनकी विशेषता व सद्गुण सदैव याद आते रहेंगे। मैं स्वयं अपनी ओर से तथा अपने सम्पूर्ण परिवार की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। - बाबूलाल सुराणा, कुचेरा (राज.) महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. के निधन का समाचार सुनकर हार्दिक दुःख हुआ। आयुष्य के आगे किसी का जोर नहीं है। महासती जी की शिष्याओं और प्रशिष्याओं ने तथा मद्रास श्रीसंघ ने जो सेवा की वह प्रशंसनीय है। मैं दिवंगत आत्मा की शांति के लिए वीरप्रभु से प्रार्थना करते हुए हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। . लोढ़ा, उगमचंद, बोलाराम बाजार महासती श्री कानकुंवरजी म. के महाप्रयाण का समाचार सुनकर हृदय को आघात लगा। हम सबने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए चार लोगस्स का ध्यान कर श्रद्धांजलि अर्पित की। परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. का महाप्रयाण सभी श्रद्धालु श्रावकों के लिए बड़ा आघात जनक था। उसे अभी भूल भी नहीं पाये थे कि यह दूसरा वज्राघात हो गया। ऐसे समय में हमारे पास धैर्य धारण करने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है। लुनकरण सोनी भिलाई (म.प्र.) (६०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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