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________________ एक दुःख को तो अभी हम भूल भी नहीं पाये थे कि दूसरा आघात लगा। किंतु होनी को कौन टाल सकता है? यह समय धैर्य से काम लेने का है। यहां विराजित पू. महासती जी के सानिध्य में शोक सभा आयोजित कर श्रद्धांजली अर्पित की गई और दिवंगत आत्मा की शांति के लिए परमात्मा से प्रार्थना की गई। - आदर्श ज्योति आदर्श ग्रुप, कुम्मकोणम् दुःखद समाचार मिले कि वयोवृद्ध, सागरसम गंभीरा, सरल स्वभावी, महासती श्री १००८ श्री कानकुंवर जी म.सा. का स्वर्गवास हो गया है। इस दुःखद समाचार से हृदय को गहरा आघात लगा। आपका सौम्य मुखड़ा और आपकी राजस्थानी कुचेरा की बोली आज भी हमारी आँखों के सम्मुख चल चित्र की भांति घूम रही है। कानों में गूंज रही है। थोड़े दिनों के अन्तराल में दो दो महान सतियों का इस संसार से बिदा हो जाना बहुत दुःख की बात है। मगर किया ही क्या जा सकता है। विश्व में जितने प्राणी जन्म लेते हैं उन सभी के साथ मरण भी निश्चित होता है। मगर महासती जी मर कर भी अजर अमर हैं। वीरप्रभ जी से यही प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें तथा आप सभी महासतियाँ जी को इस दुःख को सहन करने की सामर्थ्य प्रदान करें। सिकंदराबाद जैन स्थानक में भी शोक सभा का आयोजन रखा गया। व्याख्यान बन्द रख कर व्याख्यान में आए सभी भाई बहनों ने नवकार मंत्र का जाप किया व चार लोगस्स का ध्यान कर श्रद्धांजलि दी गई। . सौ. शांतिबाई मकाना, सिकन्दाबाद हाथी मकाना पुत्री उगमराज जी लोढ़ा श्रद्धेया महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. के देवलोक होने के समाचार सुनकर हृदय को गहरा ... आघात लगा। अभी हम श्रद्धेया महासती श्री चम्पाकुंवर जी म.सा. के दुःख को भुला भी नहीं पाये थे कि यह वज्राघात हो गया। आप दोनों परम विदुषी सरलात्मा महासतियाँ जी के रिक्त स्थान की पूर्ति निकट भविष्य में सम्भव प्रतीत नहीं होती। मैं दोनों महासतियाँ जी को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित . विमलचंद्र मोदी, जगदलपुर महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. के स्वर्गवास के समाचारों से हृदय को बहुत दुःख हुआ। होनी के आगे किसी का वश नहीं चलता। ऐसे क्षणों में धैर्य धारण करने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है। वीर प्रभु से उनकी दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हुए उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। . दौलतमल सुराणा, नागौर (राज.) पू. महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. कालधर्म को प्राप्त हुए, समाचार जानकर दुःख हुआ। पू. महासतीजी महाराज अध्यात्म योगिनी, सरल मना एवं सौम्य स्वभावी थे। इनके महाप्रयाण से श्रमण संघ में महानक्षति हुई है। हम अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए जिनेश्वर देव से प्रार्थना करते हैं कि वे दिवंगत आत्मा को, जहाँ भी हो चिर शांति प्रदान करें। . फतेहचंद बाफाना, भोपाल (म.प्र.) (५९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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