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________________ उनके पावन सानिध्य में बैठकर स्वभाव की शीतलता और विशालता के संदर्शन होते थे। हमारे दुर्भाग्य के कारण क्रूरकाल ने हम से उनको छीन लिया। आज आप हमारे सामने नहीं है। किन्तु उनके ज्योतिर्मय जीवन से सतत प्रेरणा मिलती रहेगी। मैं उन द्वय श्रमणी प्रवर के चरणारविन्दों में स्नेहस्निग्ध श्रद्धापुष्प अर्पित करती हूँ। श्रद्धाजंलि मनुष्य की आत्मा अनन्त शक्ति का अखण्ड स्रोत है। मानव इस सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। समस्त मानवीय शक्तियों का संगठन, नियंत्रण तथा सदुपयोग, संयम और सदाचार द्वारा ही हो सकता है। संयम महान शक्ति है। संयमशील पुरुष ही वीर होते हैं। मनुष्य समाज पर निर्भर है। संयम ही एकमात्र वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य -मनुष्य समाज पर निर्भर है। संयम ही एकमात्र वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य अपनी तमाम शक्तियों का विकास कर सकता है। संयम के द्वारा ही आत्मा सिद्ध बुद्ध, निरन्जन, निराकार बन जाती है। सुख और शान्ति तथा आनन्द की प्राप्ति हमारा लक्ष्य है। इस लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग संयम के अतिरिक्त अन्य नहीं है। संयम के अभाव में धर्म साधना नहीं हो सकती। मन, वचन और काया के संयम से ही जीवन का निर्माण संभव है। परमपूज्य शासन प्रभाविका, सरलता एवं सौम्यता की मूर्ति विदुषी महासती जी श्री कानकुंवरजी म.सा. का जन्म कुचेरा में हुआ तथा २२ वर्ष की उम्र में ही आपने कुचेरा में ही संयम अंगीकार किया। आपकी स्वाध्याय में अधिक रुचि थी। आपने जैन दर्शन साहित्य का गहरा अध्ययन किया। आपकी वाणी में मधुरता एवं सरलता थी। आपने लगभग ६० वर्षों तक निर्मल चारित्र का पालन किया। दिनांक ४ अगस्त १९९१ को दोपहर लगभग १२.४० बजे आपने संथारे सहित देह त्याग किया। इसी प्रकार परम पूज्य श्रमणीरत्न परमविदुषी महासतीजी श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. का जन्म कुचेरा में हुआ तथा २४ वर्ष की आयु में आपने दीक्षा कुचेरा में ली तथा लगभग ४३ वर्षों तक संयम साधना का पालन कर जिन शासन के गौरव में अभिवृद्धि की। आप सरल स्वभावी, मधुर व्याख्यानी, मृदुभाषी, सेवाभावी, स्पष्टवादिता शिक्षाविज्ञ आदि अनेक गुणों से युक्त थी। आपने पिछले ४-५ वर्षों में मद्रास साहूकारपेठ में रहकर श्रावक-श्राविकाओं में विशेष धर्म जागरण की प्रेरणा दी। दिनांक १७-३-९१ को रात्रि में ११.३० बजे आपने मद्रास में देह त्यागा। (३७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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