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________________ म.सा. के प्रवचन मधुर एवं प्रभावशाली होते थे। आपके दर्शन, वाणी एवं सेवा का मुझे अनेक बार लाभ मिला। आप मेरी संयम यात्रा के पाथेय थे। जनमानस को प्रेरणा प्रदान कर धर्म के प्रति निष्ठा जागृत करना आपका लक्ष्य रहता था। जहाँ भी आपका विचरण होता संघ में हर्ष की लहर दौड़ जाती। आप दोनों ही महान सतियां शिरोमणी शांत-प्रशांत जीवन व्यतीत कर आपने धैर्य, सहनशीलता, समर्पण एवं संघ निष्ठा का आदर्श प्रस्तुत किया, जो अनुकरणीय है। ऐसे श्रमणी रत्न का हमारे मध्य से चला जाना चतुर्विध संघ के लिए महती एवं अपूरणीति है। दोनों दिव्यात्माओं को कोटिशः श्रद्धासुमन अर्पित करती हूँ। श्री कान चम्पा हमसे, जुदा हो गई। मन की इच्छा मेरी, मन की मन में रह गई। सोचा था दर्शन की कामना, अब शीघ्र पूरी होगी। लेकिन आप स्वपिल दुनिया से विलीन हो गई। मेरा स्वप्न अधूरा रह गया • श्री मधुकर शिष्या झणकार चरणोपासिका साथ्वी जयमाला 'जीजी' आमेट कई दिनों से सोच रही थी कि दोनों महान आत्माओं के बारे में कुछ लिखू। लिखना भी ऐसे महापुरुषों के संयमी जीवन तथा उनके सानिध्य में हुए अपने अनुभवों से जिनकी महानता का कोई ओर छोर ही नहीं, फिर भी साहस करके लिखने बैठी। आँखें बंद करके याद करने, लगी कहाँ से शुरू करूं। धीरे-धीरे चिंतन संवत् २०२९ की ओर गया। आप श्री कुचेरा में चातुर्मासार्थ विराज रहे थे। उस समय पूज्य गुरुदेव उप प्रवर्तक शासन सेवी पूज्य स्वामी जी श्री ब्रजलाल जी म.सा. एवं बहुश्रुत पंडित रत्न आगम महारथी युवाचार्य भगवन् श्री मिश्रीमल जी म.सा. का गोटन चातुर्मास एवं गुरुणीसा म.सा. का धनारी कला था। जैसे ही मैं बीकानेर से आई तो गुरुणीसा म.सा. ने कहा पूज्य गुरूदेव श्री के दर्शन एवं दीक्षा मुहूर्त के लिए गोटन जाओ। वहाँ पूज्य गुरुदेव ने फरमाया कि तेरी दीक्षा मृगसर शुक्ला पंचमी को आसोप में होगी। अभी तुम कुचेरा जाओ। पूज्य स्वामी जी रावतमल जी म. सा. एवं महासतियाँजी श्री कानकुंवरजी म.सा. परम विदुषी चम्पाकुँवरजी म.सा. आदि ठाणा को विनती करना 'कि मेरी दीक्षा पर पधारना तथा पधारने की स्वीकृति दिराओ। उस समय मैं गुरु आज्ञा से कुचेरा गई। आपश्री के मैंने दर्शन किए और देखा आपका अध्ययन ठोस था। आप अपनी शिष्याओं को तत्परतापूर्वक अध्ययन करवाती। श्रावक वर्ग को किस प्रकार से प्रेरणा देना, इस कला में भी आप दोनों प्रवीण थी। आपका जीवन संयमित एवं मर्यादित था। सही है जे एगे जिये जिया पंचहिं। इसके अनुरूप ही आपकी साधना थी। आपके बारे में क्या कहूं जितना कहूं उतना ही कम है। मुझे आपने बहुत ही अच्छे ढंग से संयम जीवन जीने की शिक्षा दी तथा आसोप तो किसी कारणवश न पधारकर आप धनारी कला पधारे। आपश्री से गुरुणी जी म.सा. ने बड़ी दीक्षा देने का अनुरोध किया। फिर मेरी बड़ी दीक्षा आपश्री के मुखारविंद से हुई। मुझ पर आपका बहुत स्नेह था। मैंने सुना की आप अस्वस्थ है। भावना मेरी प्रबल थी (३५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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