SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कहां गए हो द्वय महासती, छोड़ हमें मझधार में। ____ अपनी शानी एक तुम्हीं थे, इस साधक संसार में॥ तुम सी श्रमणी जपी तपी नहीं, अन्य कोई मिल जाता है। तुम सी श्रमणी खोजने पर, वो ध्यान तुम्हीं पर जाता है। तुम तो जाकर बैठ गए हो, दिव्य देव संसार में। अपनी शानी एक तुम्हीं थे, इस साधक संसार में। ऐसी दिव्यात्मा के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूँ। श्रद्धा सुमन • श्री मधुकर शिष्या झणकार चरणोपासिका साम्बी श्री मनोहर कुंवर, आमेट (राज.) श्रद्धेय महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. आज हमारे बीच नहीं हैं। अभी -अभी पत्र मिला मद्रास से मंत्रीजी लोढाजी द्वारा कि महासती द्वय स्मति ग्रन्थ निकल रहा है। यह जानकार विचार हुआ कि मैं उन दोनों महान भात्माओं के विषय में कछ लिखं। जन्म-मरण की श्रृंखला कर्मबद्ध आत्मा चलती रहती है। कर्म की लीला अपरम्पार हैं, किन्तु जो अपने भव्य जीवन को निरन्तर आत्मकल्याण में लीन कर देता है वह मृत्यञ्जयी. आत्मजयी एवं कर्मजयी बन जाता है। इसी श्रृंखला में आबद्ध नाम है पूज्य स्वामी जी मरुधरा मंत्री प्रवर्तक श्री हजारीमल जी म.सा., उप प्रवर्तक शासन सेवी पूज्य स्वामी जी श्री ब्रजलाल जी म.सा., बहुश्रुत पंडित रत्न आगम महारथी श्री युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म.सा. 'मधुकर' की सुशिष्या श्री कानकुंवरजी म.सा. का मारवाड़ की हृदयस्थली कुचेरा की पावन भूमि में श्रीमान् बीजराज जी सुराणा की धर्मपत्नी श्रीमती अनछीबाई की कुक्षि से भाद्र कृष्णा ८, संवत् १९६८ को जन्म लिया। बचपन में अलौकिक प्रतिभा से अपूर्व अध्ययन कर जीवन बगिया को संवारा। जब युवा अवस्था की देहली पर आगमन हुआ तो आपका विवाह श्रीमान् घासीलालजी भंडारी के साथ सम्पन्न हुआ। आपका जन्म, शादी और दीक्षा का स्थान कुचेरा ही रहा। कुछ समय के पश्चात् भंडारी जी का स्वर्गवास हो गया और महासती श्री सरदारकुंवरजी म.सा. का पदार्पण हुआ तथा आपश्री के सानिध्य में ज्ञान ध्यान सीखा एवं वैराग्यभावना जागृत हुई। आपने माघ शुक्ला १० संवत् १९८९ में पूज्य स्वामीजी श्री हजारीमलजी म.सा. के मुखारविंद से कुचेरा में दीक्षाग्रहण की। फिर आपने गुरुणीसा श्री सरदारकुंवरजी म.सा. से जैन, दर्शन साहित्य का तलस्पर्शी अध्ययन किया। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत की आप अच्छी ज्ञाता थी। स्वाध्याय के सम्बल से आत्मबोध व प्रज्ञा का प्रस्फुटन हुआ। आपकी व्याख्यान शैली अद्भुत थी। महासती श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. आपकी संसार पक्षीय भतीजी थी। श्री चम्पाकुंवर जी (३४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy