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पलकों में आहट
• जैन आर्या डॉ. सुप्रभा कुमारी 'सुधा'
“संसाम सीसे जह नागराया निष्ठावान् साधक अपने जीवन के रणक्षेत्र में हाथी की तरह अंतिम दम तक जझता ही रहता है। वह भी कछ क्षण के लिये नहीं अपितु जीवन की अंतिम सांस तक। जिस प्रकार मोमबती जलाई जाती है तो वह जलती ही जाती है। जब तक कि जलकर निःशेष नहीं हो जाती बुझने का नाम नहीं लेती हैं।
मरुधरा मंत्री स्व. स्वामीजी पूज्य श्री हजारीमलजी म.सा. की सुशिष्या आगम वारिधि, सरलमना स्व. श्री विदुषी पूज्य महासतीजी श्री सरदारकुंवरजी म.सा. की शिष्या एवं मेरे श्रद्धेया मातृस्वरूपा पूज्या गुरुवर्या श्री उमरावकुंवरजी म.सा. 'अर्चना' की बड़ी गुरु बहन वयोवृद्धा पूज्या महासतीजी श्री कानकुंवरजी म.सा. एवं उन्ही की सुयोग्य शिष्या महासतीजी श्री चंपाकुंवरजी म.सा. दोनों ही बड़ी निष्ठावना साधिका थी। बहुत बार दर्शन एवं सेवा का सौभाग्य भी मिला था। वास्तव में महासतीद्वय रत्नत्रय की साधना आराधना में अत्यंत जागरुक थे।
___ महासती श्री कंचनकुंवरजी, महासती श्री चन्द्रप्रभाजी एम.ए. आदि आपकी योग्य शिष्याएं अपनी गुरुवर्या श्री के आदर्शों को ध्यान में रखते हुए ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना करती हुई संघ की शोभा बढ़ाएगी। वस्तुतः जो स्मृतियों में शेष रहते है, मृत्यु उन्हें कभी हमसे दूर नहीं कर सकती। संयम पथ पर बढ़ते हुए कदम भले ही मृत्यु के कोहरे में अदृश्य हो गए हों लेकिन उनकी आहट सदैव हमारी पलकें अनुभूत करती रहेगी।
इन्हीं भावनाओं के साथ महासती द्वय के श्री चरणों में श्रद्धासुमन समर्पित करती हूँ।
पू. श्री चम्पाकुवरजी म. की गुण स्मृति
. गो.सं. महाविदुषी प.बा. ब. प्राणकुंवर बाई म.सा. विद्या भास्कर (मद्रास)
इस अवसर्पिणी काल के भरत क्षेत्र में अनेक विभूतियाँ जिन शासन में हो चुकी है। जिन्होने जीवन को धन्य कर दिया है और मृत्यु को अमर बना दिया है। ऐसे महान यशस्वी विदुषी श्री साध्वीरत्ना पू. चंपाकुंवरजी म.सा. का जन्मस्थान कुचेरा (राजस्थान) था। आपकी माता का नाम किसनाबाई और पिता का नाम फूसालालजी सुराणा था। आपके माता पिता धर्म प्रेमी थे। वही संस्कार आपके जीवन में आने से आपको छोटी उम्र में दीक्षा अंगीकार करने की भावना हुई।
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