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________________ महासती जी म.सा. के स्वर्गवास होने पर भी अनेक शुभ पुदगल अनेक आत्माओं के कल्याणकारी हैं । मद्रास दोनों पूज्य साध्वी जी म.सा. कई बार दर्शन करने का तथा चर्चा वार्ता करने का मौका मिला। कहते है नमंति फलिनों वृक्षा फलवान वृक्ष झुकते है, नमते है । पूज्या साध्वी द्वय में जो विनम्रता तथा सरलता के दर्शन किये अविस्मरणीय है। पूज्या महासती कान कंवरजी म.सा. काफी अस्वस्थ थे शरीर में काफी वेदना थी, वेतना की परवाह किये बिना ही उठने लगी तो मैने कहा साध्वी जी आप वृद्ध है, तकलीफ है पाटे पर ही विराजो पाटे से उतरते बोली नश्वर शरीर के लिए स्वधर्म को छोडू क्या? कहते हुए वंदना करने लगी। उनकी महानता को देख नतमस्तक हो गया मैं। अनेक प्रकार की शारीरिक वेदना, कष्ट होने पर भी उनके जीवन में समता ही देखी। आप साध्वी द्वय कभी भी निंदा प्रशंसा की कटीली झाडियों में उलझती नहीं थी । सदा ध्यान चिंतन एवं साध्वी (लघु) को स्वाध्याय करवाती रहती थी। आप स्वाध्याय को बहुत महत्व देती थी । स्वयं स्वाध्याय में रत रहते हुए अपनी शिष्या वर्ग को भी स्वाध्याय में लगाये रखती थी। प्रेरणा देती रही। दीर्घ काल तक एक स्थान में स्थिरवास करने पर भी आप हमेशा लघु साध्वी को अनेक स्थानों में भेजकर धर्म जागृति का संदेश देती रही । पूज्या चम्पाकंवर जी म.सा. के प्रवचन सुनकर का मौका मिला। आपकी वाणी में अदृभुत प्रभाव था। वाणी की मधुरता तो आपको परम पूज्य युवाचार्य मधुकर मुनिजी म.सा. से विरासत मे ही मिली थी। आज साध्वी द्वय का नश्वर देह सामने नहीं है वह पंचतत्व में विलीन हो गई है। परन्तु उनका गुण रूपी शरीर अब भी अनेकों आत्माओं के लिए प्रेरणादायी है तथा रहेगा वास्तव में साध्वी जी के हर व्यवहार में एक प्रकार का उपदेश मिलता था। आज भी उनके गुण स्मृति पटल पर आते ही हृदय गद-गद होता है ऐसी महान आत्माओं का वरद हस्त हमेशा बना रहे। इन्ही मंगलकामनाओं के साथ श्रद्धापुष्प अर्पित करता हूँ। *** * * Jain Education International अर्पित है भावांजलि P जैन साध्वी श्री उमरावकुंवर 'अर्चना' पूज्य महासती जी श्री कानकुंवरजी म.सा. के देह विलय के समाचार सुने तो दिल में बड़ा आघात लगा, हृदय, आंखे भर आयी, क्योंकि हम परम श्रद्धेया पूज्या गुरुणीजी म. श्री सरदार कुंवरजी म.सा. की ११ शिष्यायों में दो ही शेष रहे थे। मेरी तो एक ही बड़ी गुरु बहन थी, मुझे छोड़ कर चले गये आज मन में बडा ही खालीपन लग रहा है। उनके जीवन की अनेकानेक स्मृतियाँ आज स्मृति के झरोखे से एक के बाद एक झांकने लगी हैं। कई बार साथ रहने का अवसर मिला । वास्तव में उनका जीवन सरलता, सरसता, सादगी और श्रमणचर्या से परिपूर्ण था। वे अपनी साधना के प्रति जागरुक थे । जीवन भर रत्नत्रय की सम्यक आराधना साधना करते हुए, आप समाधि को प्राप्त हुए । अन्त में हार्दिक श्रद्धासुमन समर्पण के साथ यह कामना करती हूँ कि उनकी आत्मा को चिरशांति प्राप्त हो । (१९) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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